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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 535 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलभो विहत्तस्संद
बात ऐसी है कि तुमने गड्ढा किया है अनादि से और आज तनिक सी मिट्टी से भरना चाहते हों अरे! उसको भरने के लिए उतना काल तो लगेगा, वस्तु तो लगेगी आज तक हमने काम, क्रोध, बंध की कथा ही को सुना है, अनुभव किया है और देखा हैं इसीलिए मन तुरंत वहीं जाता है, जहाँ से परिचित होता हैं अनादि से आप विषयों से परिचित थे अतः, आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी विषयों से अपरिचित नहीं करा रहे, लेकिन कुछ दूसरे लोगों से भी परिचय कर लो, क्योंकि जब दूसरे से परिचय करने जाओंगे तो उस समय पूर्व का ध्यान तो निश्चित भूलोगें यदि आपका मन वश में नहीं होता, तो नहीं होने दो, लेकिन स्थान छोड़ दो, व्यक्ति को बदल दो, तो नियम से बदलेंगें अन्यथा भाव का बदलना कठिन हैं
भो ज्ञानी! आप समितियों का पालन कर रहे हो, गुप्ति का पालन कर रहे हो, समिति व गुप्ति के बाद दस धर्म आ रहे हैं दसों धर्म आपसे कह रहे हैं कि तुम व्यवहारिक-जीवन और पारमार्थिक-जीवन को एकसाथ कैसे जी सकते हो? यदि पारमार्थिक-जीवन प्रारंभ हो जाये, तो व्यवहारिक-जीवन तो अपने आप निर्मल होगा ही लोग जीवनभर व्यवहारिकता को निर्मल करने के लिए पड़े रहते है; परंतु ध्यान रखना, व्यवहार कभी निर्मल नहीं हो पायेगां परमार्थ में प्रवेश कर जाओ, तो व्यवहार स्वयंमेव निर्मल हो जायेगां किसी व्यक्ति को गाली छुड़वाओ तो उसे बुरा लगता है, पर उससे कह देना कि तुम मौन ले लो, मत छोड़ो गाली जब वह मौन ले लेगा, तब गाली कैसे देगा?
भो ज्ञानी! इन दो कारिकाओं में आचार्य भगवान ने दस धर्मो तथा बारह भावनाओं का कथन कियां अतः, पहले धर्म का सेवन करों परंतु जो असेवनीय है उसको तुम सेवन कर रहे और सेवनीय को तुम असेवनीय मानकर बैठे हों मनीषियों! जिसे आज तक नहीं भया, उसे तो तुम भाओ और जिसे आज तक तुमने भाया है, उसे मत भाओं हमने संसार के बढ़ाने के कारणों को भाया है, उसमें हमने अपने चिन्तवन को भी लगाया हैं यदि इतना गहरा चिन्तवन कहीं तत्त्व के बारे में कर लिया होता, तो आज आप साधु के रूप में उभर आतें आप में शक्ति तो थी, लेकिन बताओ कितने सफल हुये? हालत यह हुई कि जितना क्षयोपशम मिला था, वह नमक-मिर्च की चिन्ता में खत्म कर दियां भी ज्ञानी! अपना विकास करना है तो दूसरे की बातों पर ध्यान देना बंद कर देनां अपना कदम आगे बढ़ाते जाओ, अन्यथा विकास का ह्यस हो जायेगा; क्योंकि जहाँ अशुद्धि प्रारंभ हुई, वहाँ सब विकास बंद हो जाता हैं व्यक्ति जब अपनी वृत्ति को भूल जाता है तो विकास का हृास प्रारंभ हो जाता हैं आपके तनाव का अर्थ यही है कि आप अपनी वृत्ति में नहीं हैं आपमें क्षमा का विकास क्यों नहीं हो रहा हो? क्योंकि आप या तो अपनी सीमा से ऊपर देखते हो या अपनी सीमा से ज्यादा नीचे चले जाते हो, तो गुस्सा आने लगता है, हीनभावना आ जाती हैं इस हीनभावना या फिर अभिमान
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