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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 528 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
संसार में नही आतीं आचार्यों ने तप के बारह भेद किये, छह बाह्य और छह अंतरंग बाह्य का तात्पर्य जो दिखने में आते हैं अंतरंग तप यानी जो सामान्यतः लोगों के दिखने में नहीं आतें छह बाह्य तप है
1. अनशनः बिना किसी अपेक्षा के संयम की सिद्धि, राग के उच्छेद एवं इंन्द्रियों को वश में करने के उद्देश्य से अन्नजल का पूर्ण त्याग करना
2. अवमौदर्यः संयम जाग्रत रखने, प्रमाद के परिहार के लिए, स्वाध्याय एवं ध्यान की सिद्धि के लिए भूख से कम खानां
3. वृत्ति परिसंख्यान : भाग्य की परीक्षा एवं राग-द्वेष के अभाव के लिए मुनिराज विधि लेकर निकलते है, जैसे यदि दाता कलश आदि लिए मिलेगा तो आहार ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं
4. रस परित्याग : इंद्रियों के दर्प को नष्ट करने हेतु, निद्रा विजय के लिए घृतादि छह रसों का त्याग अथवा एक दो रसों का त्याग करना
5. विविक्त शैयासन एकांत, स्त्री, पुरुष, बालक, नपुंसक, पशु आदि से रहित एवं निर्जन्तुक घर मंदिर, धर्मशाला, गुफा आदि स्थानों में निर्वाध ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, ध्यान की सिद्धि के लिए विविक्त शैयासन तप किया जाता हैं
6. कायक्लेश तप : वृक्षमूल योगादि शीत गर्मी की बाधा को सहन करना, शरीर को कष्ट देनां सुख-विषयक आसक्ति को कम करने के लिए साधुओं को ये छहों तप करना चाहिएं ये छहों अंतरंग तप के लिए साधन हैं।
प्रमाद एवं अन्य दोष का परिहार करना प्रायश्चित्त हैं पूज्य-पुरुषों का आदर करना विनय् तप हैं साधर्मी की सेवा करना वैयावृत्ति तप हैं आलस्य का त्याग करके ज्ञान की आराधना करना स्वाध्याय तप हैं अहंकार/मान का त्याग करना व्युत्सर्ग है एवं चित्त के विक्षेप का त्याग करना ध्यान तप हैं इस प्रकार से बारह प्रकार का तप कर्म छह का कारण हैं अतः, हे साधक ! तप करो, जीवन महान् बनेगां तप सुप्त चेतना को जागृत करने वाला हैं
'त्याग- धर्म महान्'
हे मनीषी ! उत्तम त्याग-धर्म संकेत देता है कि शांति जोड़ने में नहीं छोड़ने में हैं जोड़ना अच्छा नहीं है, छोड़ना श्रेष्ठ है; क्योंकि जो जितना जोड़ता है, वह उतना स्वयं से छूट जाता है अर्थात् स्व से छूट जाता हैं स्व से जोड़ने के लिए जीवन में त्याग अनिवार्य है, क्योंकि त्याग उच्चत्ता का महान् मूलमंत्र हैं
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