SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 491 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भगवंतो! अंतिमीथेश वर्द्धमान स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचन्द्रस्वामी ने हमें सूत्र दिया कि अतिचारों को जिसने समझ लिया, वह अनाचारों से बच गयां अल्पदोष को भी महादोष के रूप में जो देखता है, वह जीव कभी भी महान दोष को प्राप्त नहीं होता है और महान दोष में जिसे अल्प दोष नजर आता है, वह कभी भी जीवन में निर्दोष नहीं हो सकतां राई के बराबर ही क्यों न हो, दोषों को कभी छोटा न मानें दोष कभी छोटा नहीं होतां भो ज्ञानी! मन बहुत खोटा है, वह हर समय विश्राम की ओर ले जाता हैं यदि मन ने साथ दिया तो एक वृद्ध भी सम्मेदशिखर के पहाड़ पर चढ़ जाता हैं भो ज्ञानी! जीवन में उत्साह नहीं गिराना, न स्वयं का उत्साह गिराना न दूसरे का उस व्यक्ति का संयम युवा होता हैं जिसके पास उत्साह-शक्ति होती है और जिस दिन उत्साह-शक्ति का विराम हो जाता है, उसी दिन संयम से वृद्ध हो जाता हैं भगवान की वंदना के लिए एक वृद्ध सीढ़ियों पर चढ़ रहे थें साथी बोले-दादा जी! नीचे से ही वंदना कर लेतें दादाजी बोले-इस शरीर को तो नष्ट होना ही है, मैं चाहता हूँ कि जब तक काम दे रहा है, तब तक उपयोग कर लूँ एक व्यक्ति कह रहा है कि जैसे भगवान नीचे की वेदी में हैं, वैसे ही ऊपर भी हैं, इसीलिए हमने तो नीचे से वंदना कर ली अरे! उत्साह-शक्ति को बढ़ाओं कभी शरीर को वृद्ध मत मान बैठना और जिस दिन से आपने मन को वृद्ध किया तो शरीर का काम होना बंद हो जायेगा, फिर चारपाई से बाहर नहीं आ पाओगें ध्यान रखनां वृद्ध-अवस्था साधना में सबसे बड़ा विघ्न कराने वाली होती हैं अहो ज्ञानियो! यह तो मनुष्य का शरीर थां सूर्य को भी शाम को ढलते देखा गया, उसका तेज फीका हो गयां संध्या आने के पहले कुछ करके चले जाओं प्रभु से प्रार्थना कर लेना, कि भगवन्! हाथ में लाठी टिक जाए, उसका विकल्प नहीं, चिंता नहीं है, पर मन में लाठी न टिके, वृद्ध अवस्था में उत्साह बना रहें भो ज्ञानी! अंतिम सल्लेखना के काल में कानों को ढोल-धमाके में मत ले जाना, संगीत मत सुनानां अब तो मात्र अपने चैतन्य प्रभु का गीत सुनना, सभी अतिचार समाप्त हो जाएँगें ज्यादा मत देखो, ज्यादा मत सुनो, स्पर्श भी मत करो, गंध को भी ज्यादा मत सूंघों जब आपने सभी इंद्रियों को व्यवस्थित कर लिया, अब अतिचार क्यों लगेगा? अतिचार लगने का कारण था इंद्रियों का भागनां यदि इंद्रियों का भागना बंद हो गया तो आपने विषयों की प्रवृत्ति मंद कर ली, अब अतिचार नहीं लगेगां इसलिए अंतिम समय में पराधीन होना बंद कर दों बिल्कुल स्वाधीन रहों जिस जीव ने अपने आपको नहीं सम्हाला, तो सल्लेखना के काल में उनको बड़ी परेशानी होती हैं सभी रोग एकसाथ अपना योग बनाते हैं, सभी कर्म एक साथ घेरते हैं, क्योंकि कर्म कह रहे हैं कि यदि आयु-कर्म आ गया, तो मैं इसको फल कब दे पाऊँगा ? आपने अनेक बार देखा होगा कि एक वह जीव है जिसने साधना की है और साधना के अंतिम समय में भी उसका तीव्र यश फैल रहा हैं, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy