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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 470 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
चाहे राग जन्य हो, हिंसा दोनों में हैं मरण के समय चाहे किसी को क्रोध न आ रहा हो, लेकिन लोभ लगा है, राग लगा है कि मेरे बेटे को बुला दो, मेरे पुत्र को बुला दो, मेरी पत्नी को बुला दों जिसने तेरी पूरी दुनियाँ का पतन कर दिया उस पत्नी को अभी भी नहीं छोड़ पा रहा हैं संयोग थे, संबंध थे, हो गये, लेकिन अब तो स्वभाव पर दृष्टि डालों अब तो विवेक को जन्म दे दों मत करो रागं जिसे तुम जोड़ा मानकर चल रहे हो, वह शाश्वत नहीं हैं एकमात्र ज्ञान-दर्शन का ही जोड़ा हैं इसलिए निज से जुड़ जाओं अब तो तुम्हारे पास सब निमित्त मौजूद हैं, अभी तो आप अच्छे हो, क्षुल्लक तो बन ही सकते हों जिसका शील निर्मल है, जिसका चारित्र निर्मल है, जिसका संयम निर्मल है, उसकी समाधि निर्मल हैं उसको मुक्ति-कन्या स्वयमेव वर लेती हैं
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कम्बोडिया, जंगकोर्वत स्थित
श्री पंच मेरु जिन मंदिर
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