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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 468 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
पर हो, पर मरण तो सन्यास की शैय्या पर कर सकता हैं जन्म के लिए दूसरे को तलाशते हैं, लेकिन मृत्यु तो स्वयं के ऊपर निर्भर हैं जन्म कर्माधीन था, पर मृत्यु कर्माधीन नहीं है, पुरुषार्थाधीन हैं चाण्डाल के घर में जन्म हो या दरिद्री के घर में, जन्म कर्माधीन होता हैं चाण्डाल भी पुरुषार्थ करके सल्लेखना कर सकता हैं आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने सूत्र दिया है-"यह मत बोलना आप, कि मैंने जैन कुल में जन्म लिया है, मैं ही सन्यास का पात्र हूँ"
एक तिर्यंच की भी समाधि होती है और हुई भी हैं 'भगवान पार्श्वनाथ' और 'महावीर स्वामी के जीव से पूछ लेनां अहो ज्ञानी आत्माओ! पुद्गल के अहम् में मत जीना, वर्तमान के वैभव में न झुलस जानां कुछ लोग उदय को देखकर नेत्रों में आँसू को उदित कर लेते हैं यदि पाप उदय में आ रहा है, तो पाप का खारापन तेरे उदय में ही तो थां पुण्य उदय में आ रहा है, तो पुण्य का मीठापन तेरे परिणामों में था इसलिए किसी को इंगित मत करो, अपनी परिणति पर ध्यान रखों परिणति खारी होगी, तो उदय खारा होगा, परिणति मीठी होगी, तो उदय मीठा होगां ध्यान रखना, चाण्डाल के अंदर भी सम्यक्त्वरूपी अंगार धधक सकता हैं एक बहुत बड़े कुलीन के पास मिथ्यात्व की दुर्गन्ध छाई रह सकती हैं उत्तम कुल में जन्म लेने का नाम श्रावक नहीं, उत्तम परिणति के होने का नाम श्रावक हैं वह चाण्डाल भी श्रावक है, पर श्रावक-कुल में जन्म लेकर भी आपके अन्तरंग में यदि अश्रद्धान है, मित्थात्व है, तो आप भी चाण्डाल से कम नहीं हों चाण्डाल की पर्याय में मोक्षमार्ग दिख रहा था जिनसूत्र है कि 'सम्यकदृष्टि नरक में रहकर भी मोक्षमार्गी है और मिथ्यादृष्टि स्वर्ग में रहकर भी संसारमार्गी ही हैं सल्लेखना के लिए यह मत सोचना कि उत्तम कुल, उत्तम क्षेत्र चाहिएं सर्प ने सल्लेखना कर ली, सिंह ने सल्लेखना कर ली एक स्वान ने सल्लेखना की, बैल ने सल्लेखना की आप क्यों नहीं कर पाओगे? वहाँ पर्याय थी तिर्यचों की, परन्तु पुरुष जाग्रत था, इसलिए समाधि कर सकां मरते हुए स्वान को जीवंधर कुमार ने 'णमोकार मंत्र' सुनायां वह देव हो गयां वह स्वान कितना श्रेष्ठ था, उसका पुण्य कितना प्रबल था कि पर्याय स्वान की थी, पर परिणति भगवान की थीं पर्याय पर अहम् मत करो, गौरव करो तो परिणति पर करों मोक्षमार्ग परिणामों का हैं तेरे परिणाम उज्ज्वल, तेरा संयम उज्ज्वल, अब तुझे भगवान् नहीं देखना इस पर्याय में पुण्य का उदय है, तुझे सम्हलने का अवसर हैं कहीं ऐसी पर्याय में चला गया, जिसमें तू नहीं सम्हल पाया, तो क्या करेगा? मुनिराज ध्यान में लीन थें चील आई और नेत्र खींच कर ले गयीं अब तो समाधि निश्चित हैं ईर्यापथ का शोधन कैसे करेंगे? एक कदम चल नहीं सकतें परंतु वह कह रहे हैं-अहो चील! तू मेरी दो आँखों के गोलों को तो खींच सकता है, लेकिन मेरे अंदर ज्ञान-दर्शन के नेत्र नहीं खींच सकतां चील दोनों आँखें निकाल ले गई, फिर भी चीत्कार नहीं निकलीं निग्रंथ की चीत्कार कहाँ? जहाँ चीत्कार है वहाँ निग्रंथ कहाँ? कितनी गंभीर अवस्था होगी, रक्त भी बहा होगा, पीड़ा भी हुई होगी, जड़ तो
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