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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 467 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"अहिंसा की सिद्धिः है सल्लेखना-मरण"
नीयन्तेऽत्र कषाया हिंसाया हेतवो यतस्तनुताम् सल्लेखनामपि ततः प्राहुरहिंसाप्रसिद्ध्यर्थम् 179
अन्वयार्थ : यतः अत्र = क्योंकि सन्यासमरण में हिंसाया हेतवः = हिंसा के हेतुभूतं कषायाः तनुताम् = कषाय क्षीणता कों नीयन्ते = प्राप्त होते हैं ततः = उस कारण से सल्लेखनामपि = सन्यास को भी आचार्यगणं अहिंसाप्रसिद्धयर्थम् = अहिंसा की सिद्धि के लिये प्राहुः = कहते हैं
इति यो व्रतरक्षार्थ सततं पालयति सकलशीलानिं वरयति पतिंवरेव स्वयमेव तमुत्सुका शिवपदश्री: 180
अन्वयार्थः यः इति = जो इस प्रकारं व्रतरक्षार्थ = पंचाणुव्रतों की रक्षा के लिये सकल शीलानि = समस्त शीलों कों सततं पालयति = निरन्तर पालता हैं तम् = उस पुरुष कों शिवपदश्रीः = मोक्षपद की लक्ष्मी उत्सुका = अतिशय उत्कण्ठितं पतिंवरा इव = स्वयंवर की कन्या के समानं स्वयमेव = आप हीं वरयति = स्वीकार करती है अर्थात् प्राप्त होती हैं
अन्तिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी की पावन-पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचन्द्र स्वामी ने जीवन को प्रकाशित करने के लिए अलौकिक सूत्र दिया है कि, 'तुमने अनंत बार मरण किये लेकिन मरण को नहीं जानां वैसे मृत्यु का ज्ञान सभी को होता है, परन्तु जन्म-समय याद नहीं रहतां जन्म उल्टा लेना या सीधा-यह प्रकृति पर निर्भर होता हैं लेकिन मृत्यु सीधी या उल्टी हो, यह प्रकृति पर नहीं, परिणामों पर निर्भर हैं जन्म तो किसी घर में हो रहा है, यह पराधीनता हैं जन्म भले ही भोगों की शैय्या
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