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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 451 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी! मरण दो प्रकार का होता है - तद्भव मरण और नित्य मरणं आयु पूर्ण करके मरना, यह तद्भव मरण है और प्रतिदिन मरना, वह नित्य मरण चल रहा हैं " यमस्य करुणा नास्ति" यमराज को कोई करुणा नहीं हैं इसलिए "धर्मस्य त्वरितागति" धर्म में तुरंत गमन करों भो ज्ञानियो! मरना तो होगा निश्चित हैं कुंदकुंद स्वामी 'मूलाचार में कह रहे हैं
धीरेण वि मरिदव्वं, णिक्षीरेण वि अवस्स मरिदव्वं जदि दोहिं वि मरिदव्यं वरं हि धीरतणेण मरिदव्यं 100
सीलेणवि मरिदव्यं णिस्सीलेणवि अवस्य मरिदव्यं जइ दोहिं वि मरियव्वं, वरं हु सीलत्तणेण मरियव्वं 101
अहो मुमुक्षु ! धीर को भी मरना पड़ता है और अधीर को भी मरना पड़ता हैं जब दोनों को ही अवश्य मरना पड़ता है तो क्यों न हम धीरता के साथ मरण करें? यदि शील के साथ मरे तो 'समाधि मरण हो गया' कहेंगें शव यात्रा नहीं, शिव यात्रा निकलेगी, क्योंकि मुमुक्षु की शवयात्रा नहीं होती पंडित - पंडित मरण करने वाले की कभी शवयात्रा नहीं होती हैं कपूर की भांति शरीर उड़ जाता हैं न डंडे की आवश्यकता पड़ती है, न कण्डे कीं घर से निकल चलो पिच्छी कमण्डल लेकर नहीं तो डंडे व कण्डे के साथ तुम्हारा बेटा निकालेगां आचार्य अमृतचंन्द्र स्वामी कह रहे हैं - परमार्थ की दृष्टि बनाकर चलना, लेकिन व्यवहारिकता से खोखले मत हो जाना
मनीषियो! यह धन साथ नहीं जाएगा, यह धरती साथ नहीं जाएगी, यह कुटुम्बी भी नहीं जाएँगें नारी कहाँ तक जाएगी? जिसके पीछे तूने पूरी देह खोखली कर डाली, वह देहरी के पार नहीं जातीं बहिन कहाँ तक ? मात्र शरीर तक परिवार कहाँ तक? श्मशान घाट तक इसके बाद क्या होगा? तेरी चिता जलेगीं अहो! जिनका चित्त निर्मल नहीं है, उनकी बार-बार चिता जलती हैं जिनका चित्त निर्मल हो जाता है, वह चारित्र धारण कर लेते हैं चारित्र धारण कर लेते हैं तो पंडितमरण हो जाता है और पंडित मरण हो जाता है, तो आगामी पंडित-पंडित मरण की भूमिका बनती है, फिर ये चिताएं नहीं जलतीं हे मुमुक्षु ! जब तक तुझे निर्वाण की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक पंचपरमेष्ठी भगवान के चरण छोड़कर मत बैठ जानां वे ही चरण तुझे परम - चरण की शरण प्राप्त कराएँगें
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