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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 448 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 कियां यह मृत्यु-महोत्सव अंतिम उत्सव है जीवन में सम्यक्त्व के साथ जो मरण है, वह 'बालमरण है अव्रतदशा में देशव्रती अथवा प्रतिमाधारी का जो मरण है, वह 'बाल पंडित मरण' हैं महाव्रती का मरण 'पंडित मरण' हैं केवली भगवान का निर्वाण 'पंडित-पंडित मरण' हैं लेकिन ध्यान रखना, जब तक पंडित मरण नहीं करोगे, तब तक पंडित-पंडित मरण नहीं होगां बिना निग्रंथ मुद्रा धारण किये, पंडित मरण नहीं होतां बिना पंडित मरण किये, पंडित-पंडित मरण नहीं होतां यदि सल्लेखना रहित भी एक निग्रंथ मुनि का मरण होता है, तो वह बत्तीस भव से ज्यादा संसार में भटक नहीं सकता हैं सच्चा भावलिंगी मुनि बत्तीस भव के अंदर-अंदर मोक्ष जाएगा और यदि सल्लेखना सहित मरण कर लेगा तो ज्यादा से ज्यादा सात/आठ भव, और कम से कम दो/तीन भव में मोक्ष हो जावेगां भो ज्ञानी! एक जीव जब साधना की कसौटी पर पहुँचकर जैसे ही श्रावक के बारह व्रतों को धारण करता है, वहीं से सल्लेखना का व्रत प्रारंभ हो जाता हैं जिन जीवों को सल्लेखना करना हो, वे बड़े विवेक के साथ समझें रसना इंद्रिय पर नियंत्रण करना प्रारंभ कर देना अंतिम समय में वासनाएँ नहीं सताती, रसना सताती हैं खाया नहीं जाता, पर खाने को माँगते हैं जिस समय जिहवा पर रखा, उसी समय हंस निकल गया तो, भो ज्ञानी ! पूरे जीवन की साधना व्यर्थ चली गईं सल्लेखना वाले प्राणी के लिए विश्व के प्राणीमात्र के प्रति समाधि भाव होता हैं तभी, मनीषियो! समाधि होती हैं एक बात का ध्यान रखना, समाधि में बहुत भीड़ आ सकती है, लेकिन भीड़ में कभी समाधि नहीं होगी, एकांत में होगी समाधि निज में होगी और समाधि कोई करा नहीं पाएगा, समाधि स्वयं में होगी जिनके सान्निध्य में सल्लेखना होती है, वे आचार्य “निर्यापकाचार्य' कहलाते हैं और जिनकी सल्लेखना होती है, वे 'क्षपक' कहलाते हैं निर्यापकाचार्य की खोज बारह वर्ष पहले से प्रारंभ हो जाती हैं भो ज्ञानी! पूरा प्रकरण अब ध्यान से सुननां यमराज ने जिनके संकेत दे दिये, वह पुत्र से आज बोल दें, बेटा! मेरे आत्मज हो, मैंने तुम्हें जन्म दिया है, मैंने लालन-पालन किया, पर ध्यान रखना कि अंतिम समय तुम मुझे सल्लेखना जरूर करा देनां किसी हास्पिटल नहीं ले जाना, परंतु उस वैद्य को जरूर दिखा देना, जो रत्नत्रय की औषधि देने वाला हों शरीर की सुरक्षा तो मैंने अनेक बार की है, परंतु आत्म धर्म की सुरक्षा मैंने आज तक नहीं की साधक पूरा प्रयास करता हैं ध्यान रखना, जरा-सा सिर दर्द हो या कोई विषमता आ गई, तो कहने लगे-मैं तो समाधि लेता हूँ यदि आप मरने की भावना भाते हो, तो सल्लेखना में अतिचार हैं समाधि ऐसे नहीं होती है कि घर में कोई विषमता आ गई, हम तो समाधि लेते हैं यह कोई सल्लेखना नहीं सल्लेखना की भाषा को समझनां रत्नत्रय का पालन हो रहा है कि नहीं? सल्लेखना कब करें ? जीवन में ध्यान रखना, गुरु बनाकर चलना, पर गुरु के गुरु बनने का प्रयास मत करनां जीवन में गुरु रहेगा, तो हर समय तुम्हारी सुरक्षा होगीं मिट्टी के गुरु ने धनुर्विद्याधारी बना दिया, तो यह चैतन्य गुरु निर्वाण पर चलना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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