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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 44 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
चारित्र ही तो कारण-परमात्मा हैं इस अशुद्ध आत्मा को योगों में लिप्त आत्मा को, कारण-परमात्मा मत बना देना आचार्य, उपाध्याय, साधु की आत्मा कारण-परमात्मा है और अरिहंत, सिद्ध की आत्मा कार्य-परमात्मां
भो चेतन! निश्चय के स्वरूप को व्यवहार मत मान लेनां व्यवहार को निश्चय का स्वरूप समझने का माध्यम माननां इसलिये सिंह, सिंह है और बिल्ली, बिल्ली हैं लेकिन बिल्ली, सिंह नहीं हैं जिसने सिंह को नहीं देखा है, वह बिल्ली के हाव-भाव, बिल्ली की प्रवृत्तियों से सिंह के हाव-भाव एवं प्रवृत्तियों को जान सकता हैं
अमृतचंद्राचार्य विरचित पुरुषार्थसिद्धयुपाय ग्रंथ की भूमिका समाप्त
PRESHARI
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अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
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