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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 43 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
को समझ नहीं पा रहा हैं मालूम चला कि पर्याय का पंथ बन गया परंतु अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि तस्य देशना नास्ति', उनको देशना नहीं हैं
मनीषियो! निश्चय व व्यवहार कोई हउआ नहीं हैं यह वस्तु को समझाने की व्यवस्था है, भाषा हैं भाषा, भाषा होती हैं भाषा न कभी वस्तु हुई, ना कभी होगी वस्तु कथन की शैलियां भिन्न-भिन्न हैं वस्तुस्वरूप तो एक ही हैं जो वस्तु है, वो ही स्वरूप हैं जो स्वरूप है, वो ही वस्तु हैं जिसमें स्वरूप नहीं है, वह वस्तु कैसी ? भाषाओं को लेकर तुम झगड़ रहे हो और परिणाम खराब कर रहे हों देखो, निश्चय वाले आ गये, व्यवहार वाले आ गयें यह अध्यात्म नहीं हैं अध् यात्म वह है, जो टूटी आत्मा को आत्मा में जोड़ दें अध्यात्म कहता है कि तुम सबसे हट जाओ, पर्याय से हट जाओं अपनी आत्मा को आत्मा में जोड़ दो, इसका नाम अध्यात्म हैं जब हम एक इंद्रिय वनस्पति में देख रहे हैं कि भावी भगवान बैठा है, किंतु घर में भाई ही भाई से मुँह नहीं बोल रहा है, क्योंकि हमारे अनुसार नहीं चल रहे हैं।
अहो भाषा के भगवन्तो! तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगीं भाषा के भगवान बनाने से भगवान नहीं बनोगें भावों के भगवान बनने से भगवान बनोगें ग्रंथ से नहीं, निग्रंथ-दशा से ही मोक्षमार्ग हैं भो चेतन ! मोक्षमार्ग क्या है ? निग्रंथ होना मोक्षमार्ग हैं अहो ! निर्ग्रथों की उपासना ही सग्रंथों का मोक्षमार्ग हैं श्रावको ! यही तुम्हारा मोक्षमार्ग है, परंतु इससे मोक्ष नहीं मिलेगा मोक्ष तभी मिलेगा, जब तुम इस मार्ग को प्राप्त कर लोगें इसलिये 'देशना नास्ति कहा, क्यों? क्योंकि उसने आराधना को सर्वथा मान लिया, इसलिये देशना नहीं हैं मार्ग भी हैं परंतु आगे मार्ग पकड़ना पड़ेगां
भो ज्ञानी ! अबुध को बोध कराने के लिए व्यवहार नय का कथन किया हैं परंतु जो व्यवहार मात्र को ही मोक्षमार्ग मान बैठा, निश्चय को मानना ही नहीं चाहता है, सुनना ही नहीं चाहता है, समझना ही नहीं चाहता है, "तस्य देशना नास्ति उसके लिये भी देशना नहीं है परमार्थ को समझने के लिए कथन चल रहा है और जो मात्र निःसही, निःसही चिल्ला रहा है, उसके लिये 'देशना नास्तिं' भो ज्ञानी ! ध्यान रखना, कथन काकतालीय- न्याय से भी होता हैं जैसे पंडितजी ने कहा, बेटा! घी रखा है, कौआ आये तो बचाना, बिगाड़ न जाये, बेटा बोला- ठीक पिताजी, जो आज्ञां बिल्ली आई, बिगाड़ कर चली गई पंडितजी बोले- क्यों बेटा ? पिताजी आपने बोला था कि कौआ से रक्षा करना, बिल्ली से नहीं बोला थां तो, बेटा! इतनी बुद्धि तुम्हारी नहीं चली कि कौआ से बचाने को बोला था, तो बिल्ली से तो पहले ही बचाना थां वैसे ही जब एक नय से व्यवहारी को 'देशना नास्ति, वैसे ही एक दृष्टि से निश्चयी को भी 'देशना नास्तिं' बिना व्यवहार के निश्चय हो नहीं सकतां ध्यान रखो, जैसे बिल्ली शेर नहीं है, वैसे ही आपकी आत्मा भगवान नहीं हैं कार्य परमात्मा तभी होगा, जब कारण परमात्मा का कार्य करेगा बिना कार्य करे भगवान आत्मा नहीं हैं सम्यक्दर्शन, ज्ञान,
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