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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 406 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
का मतलब है उपवासं जो निज में वास करेगा, तो क्या वह भोजन में वास करेगा? ध्यान रखना, कभी व्रत, संयम, उपवास की अवहेलना मत करना जैसे आज अष्टमी है तो कल सप्तमी को आपको एकासन करना चाहिएं एकासन करने के बाद तुरंत भगवान् के सामने या गुरु के सामने जाकर आपको उपवास ले लेना चाहिएं शाम को न मंजन करना, न पानी लेनां यदि कुछ पानी ले लिया, तो यह उपवास नहीं है, अनुपवास हैं उपवास में चारों प्रकार के आहार पानी का त्याग होता हैं कुछ लोग एकासन करते हैं और शाम को पानी लेते हैं, उनका तो एकासन भी नहीं होता हैं भो मनीषियो! कम से कम उपवास के दिन आप साबुन-सोड़े का उपयोग तो न करें, क्योंकि आपका शरीर-संस्कार का भी त्याग हैं
भो ज्ञानी! शरीर आदि से ममत्व-बुद्धि का त्याग करके उपवास के पूर्व दिन तथा अगले दिन को एकासन करें उपवास का अर्थ है-भोजन का त्यागं चौबीस घंटे का नहीं बनता, एक घंटे का कर दो; लेकिन करो तो, कुछ तो करों उसके बाद संपूर्ण योगों को छोड़कर हिंसादि कार्यों को उपवास के दिन न करें, वास्तविकता में वास करें मंदिर में आकर साधना करें संपूर्ण इन्द्रिये विषयों से विरक्त होकर मन, वचन, काय गुप्ति का भी पालन करें उस दिन तो आप बिल्कुल मुनि-तुल्य हो जाओं धोती- दुपट्टा में रहें तो बहुत अच्छा हैं इतना विवेक जरूर रखना है कि जिन वस्त्रों में आप लघुशंका करके आ चुके हो उन कपड़ों में मंदिर के दर्शन करने नहीं आना चाहिएं हम आपका मंदिर नहीं छुड़ा रहे हैं, मंदिर आने की निर्मल विधि बता रहे हैं क्योंकि आप गृहस्थ हैं वास्तविकता तो यह है कि जिन वस्त्रों से भोजन किया हो, मल विसर्जन किया हो, ऐसे वस्त्रों को पहन कर देव, गुरु, शास्त्र का स्पर्श नहीं करना चाहिएं शाम को पूरे बाजार में घूम-घाम कर आते हैं और गद्दी पर बैठकर, वाचना शुरू कर दी ठंडी आने दो, ऊन के कपड़े पहनोगे और बढ़िया चादर ओढ़कर स्वाध्याय करोगें यह अनुचित हैं
अहो मनीषियो! दूसरों के बालों को ओढ़कर तुम जिनवाणी छू रहे हो? सूती कपड़ों का उपयोग तो कर ही लेनां जैसा रुचे, वैसा करा;, लेकिन मार्ग यह हैं जिनकी असमर्थता है, उनको ग्रहण मत करनां तुम समर्थ हो, जिनेन्द्र की वाणी को पाश्चात्य संस्कृति में मत बदलों भो ज्ञानी! विवेक से समझनां यह तीर्थंकर-जिनेन्द्र की देशना, साक्षात जिनेन्द्र की वाणी हैं अपने जीवन में विनय सीखो, तभी सामायिक आएगी, तभी तुम्हारी साधना सफल होगी
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मंगल वाद्य (सोलह सपने)
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