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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 405 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कहते हैं कि यदि तुम मुक्ति-वधू से संबंध करना चाहते हो तो भोजन छोड़ दो सामायिक करने के लिए कुछ लोग इसलिए सामायिक नहीं करते, क्योंकि मन नहीं लगतां कोई व्यक्ति एक घंटे पूजा कर रहा है और कहता है कि मेरा चित्त स्थिर हो गया हैं अरे! तुम धोखे में बैठे हो कि हर्ष/उल्हास में बैठे हो? क्योंकि पूजन में चित्त स्थिर नहीं होता, चित्त चलायमान होता हैं भगवान् के सामने चढ़ाने, रखने, उठाने में ध्यान की स्थिरता नहीं हैं उन प्रकरणों में तुम इतने तन्मय थे कि आप समझ रहे थे कि मेरा चित्त स्थिर हो गया, लेकिन चित्त स्थिर नहीं था जब आप सामायिक करने बैठो, तब आपको लगेगा कि, हाय! यह चित्त तो मेरे पास है ही नहीं अब हम इसको कैसे स्थिर करें? अभी तक आप मित्रों के साथ बैठे थे, क्योंकि तुम्हारे पास धन-वैभव थां जब सब कुछ नष्ट हो जाये, इसके बाद मित्रों को बुलानां बुलाने पर भी नहीं आयेंगें इसी प्रकार जब सामायिक करने बैठें और चित्त तुम्हारा भागने लगे, उसी समय आप सामायिक करना, वही श्रेष्ठ काल है सामायिक करने का चित्त चलायमान होने के कारणों के उपस्थित होने पर भी चित्त को वहाँ से रोककर रखना, इसका नाम है सामायिक, इसका नाम है वीरतां यह ध्यान रखना, जब तुम्हारी कषायों में तीव्रता चल रही हो, उस समय मन्दता के भाव बनाओ और पुरुषार्थ करों उस समय साम्यभाव रखकर पुरुषार्थ मत छोड़ देना, अन्यथा भोगों और कषायों की नदी गहरी हैं प्रतिकूलता के काल में इतने सम्हल जाना कि ऊपर से कुट रहे हो, पिट रहे हो, फिर भी अंतरंग में सम्हलकर रहना, कुम्भकार का घड़ा बन जानां अंतिम दृष्टि यही बनाकर चलना कि सबके बीच में मैं अकेला ही हूँ और अकेला ही भोगना पड़ेगां सब साथ होंगे, फिर भी मैं सबके साथ नहीं रहूँगां अब तो क्षमादिभाव से परिणत निज आत्मा ही शरण हैं फिर वहाँ पर किसी को याद मत करना कहीं मरण का काल आ गया और उस समय हम अपने आपको नहीं सम्हाल पाए, तो दुर्गति सुनिश्चित हैं इसलिए मंद भाव बनाने का पुरुषार्थ करते रहनां पुण्य-पाप की मध्यम अवस्था के वेग से मनुष्य आयु का बंध होता हैं कर्म-सिद्धांत कहता है कि जब विकारों की, कषायों की तीव्रता होती है तो भी आयु कर्म का बंध नहीं होतां कर्म की तीव्रता में व मन्दता में भी आयु का बंध नहीं होता, मध्यम अंशों में ही आयु कर्म का बंध होता हैं आयु बंध का काल त्रिभाग में आएगा, लेकिन उस त्रिभाग की तैयारियाँ आज से ही प्रारंभ कर देनां ।
भो ज्ञानी! वासना के संस्कार अनादि से हैं, इसलिए यह नहीं कहना कि मन नहीं लगतां उन अनादि के संस्कारों को कम करने के लिए आप धीरे-धीरे संस्कार डालना प्रारंभ करो, बैठना शुरू करों आज आप यहाँ बैठे हो, वह पहले संस्कार पड़ चुके थे और आज जो संस्कार पड़ रहे हैं, वह आगे आपके काम आएँगें उनको स्थिर करने के लिए आपको सरल मार्ग बताते हैं एक महीने में दो पक्ष होते हैं, दो पक्षों में चार पर्व आते हैं, दो अष्टमियाँ दो चतुर्दशियाँ, ये शास्वत पर्व हैं यदि घर में सब साधन हैं, तो उचित यही है कि तुम वास्तविकता में चले जाओं सामायिक की वृद्धि के लिए अवश्य ही उपवास करना चाहिएं निज में वास करने
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