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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 394 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! आप अर्थ पुरुषार्थ किसके लिए कर रहो हो? धर्म-पुरुषार्थ कितना कर रहे हो और अर्थ व काम पुरुषार्थ के लिए कितना समय निकाल रहे हो ? मोह कितना बड़ा है कि अंतिम सांसों तक चाहता कि मैं कुछ कर लूँ इसलिए अपनी परिणति को दोष दों सर्विस छोड़ने के बाद एक तीव्ररागी दुकान डालता हैं दुर्ग में एक सज्जन बहुत बड़े आफिसर थे और छह महिना पहले वह रिटायर हो गएं तो वे अर्द्धवि आकर बोले-महाराज जी! बहुत परेशानी है, धन तो इतना मिल चुका है कि पूरा जीवन ऐसे ही बैठे रहूँ और अपने बेटे तक का जीवन निकल सकता हैं पर, महाराज जी! आदेश देना मेरी आदत बन गई, लेकिन अब कोई मुझे पूछता ही नहीं हैं मैं खाली-खाली महसूस कर रहा हूँ (भैया! आदत मत डाल लेना आदेश देने की) उनसे कहा-तुम सोनागिर चले जाओ, सम्मेदशिखर चले जाओ, जिनवाणी का स्वाध्याय करों कहने लगे-महाराज जी! कहीं मन नहीं लगता हैं सोचो जीव की दशां भो ज्ञानी! आदेश तो करना, लेकिन जो स्वयं को आदेश देना प्रारंभ कर देता है उसकी वहाँ से सामायिक प्रारंभ हो जाती हैं जहाँ 'पर' को आदेश दिया गया था, वहाँ पर-सामायिक थीं भो ज्ञानी! जो पर–सामायिक का संचालन कर रहा है, वह निज-सामायिक से हट चुका हैं सम+इक =समय में एक हो जाना, इसका नाम सामायिक हैं समय यानि समतां समता में लीन हो जाना, इसका नाम सामायिक हैं समय यानि आगमं आगम के सूत्रों में लीन हो जाना उसका नाम सामायिक समय यानी जिनशासनं जिनशासन में श्रद्धान्वित हो जाना, इसका नाम सामायिक हैं पंचपरमगुरु (परमेष्ठी) की आराधना में लीन हो जाना, इसका नाम व्यवहार सामायिक है और निजस्वरूप में लीन हो जाना निश्चय-सामायिक हैं द्रव्य-सामायिक, क्षेत्र-सामायिक, काल सामायिक, भव-सामायिक, भाव सामायिक, नाम सामायिक, स्थापना-सामायिक यह सामायिक के प्रकार हैं (1) द्रव्य सामायिक:-'मुझे यह द्रव्य अच्छा नहीं लगता, आपकी सामायिक गईं क्योंकि 'समता सर्वभूतेषु जो सम्पूर्ण विश्व में सम्पूर्ण जीव हैं, उन सब के प्रति समवृत्ति का होना सामायिक थां मार्ग में मेंढ़क मृत पड़ा था, दुर्गध को जानकर तू नाक पकड़ने लगां अहो चैतन्य! उस द्रव्य का अपना धर्म थां मृतक तिथंच ने अपनी दुर्गध को नहीं छोड़ा, लेकिन तूने अपने निर्विचिकित्सा धर्म को छोड़ा हैं अशुभ द्रव्य को देखकर अशुभ परिणामों का होना, यह द्रव्य-सामायिक का अभाव हैं शुभ या अशुभ द्रव्य को देखकर भी शुभ या अशुभ परिणाम नहीं लाना, इसका नाम द्रव्य- सामायिक हैं भो ज्ञानी! सामायिक करना सीख लो तो आपको कहीं शत्रु नजर नहीं आएँगें किसी द्रव्य को देखकर तुम्हारे परिणाम बिगड़ रहे हैं, उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन तुम्हारी सामायिक बिगड़ गयी, क्योंकि आप सत्ता देख रहे पुण्य-पर्याय की, और ज्ञानी सत्ता देखता है पुण्य-द्रव्य की जब वह पुण्य द्रव्य की सत्ता को निहारता है तो शांत बैठ जाता हैं भैया! सिंहासन पर यह Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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