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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 390 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 लिया है, तत्पश्चात् जो महाव्रतों में प्रवेश करता है, वह खरा उतरता हैं पर इतना ध्यान रखना कि नमोस्तु-शासन की प्रवज्या (दीक्षा) को भीड़ की प्रवज्या न बनाया जाएं इसे भीड़ का रूप न दिया जाएं वैराग्य को ही महत्व दिया जाएं उस वैराग्य में भीड़ आती है तो कोई दिक्कत नहीं वीतराग-शासन को भीड़ के अभाव में ढाई हजार वर्ष हो चुके, फिर भी जाज्वल्यमान हैं कभी भी मिथ्यात्व से समझौता इसने किया नहीं, भले ही दो/तीन सौ वर्ष ऐसे निकले जहाँ निग्रंथता का अभाव रहा, लेकिन वीतरागता को माननेवाले श्रावकों ने किसी गृहस्थ को गुरु स्वीकार नहीं कियां अहो! पंडित दौलतराम जी सरीखे विद्वानों के समय में निग्रंथ-दशा नहीं थी, पर निग्रंथों पर ग्रन्थ फिर भी लिखते रहें भो ज्ञानी! आँखों से तो देखो, पर दृष्टि को आँख पर मत लगा देना, तब तुम श्रद्धा के लक्ष्य को प्राप्त कर लोगें श्रद्धा यानि आत्मां दृष्टि को एक करके देखना कि जो-जो द्रव्य हैं, वह अपने-अपने स्वभाव में हैं इतनी गहरी दृष्टि बन जायेगी जिस दिन, फिर नेत्रों से क्या, सर्वांग से देखोगे, चराचर सब कुछ दिखेगां आचार्य कुंदकुंद स्वामी 'समयसार' में लिख रहे हैं- कमल के पत्र पर पानी की बूंद प्रथम तो टिकती ही नहीं और टिक भी जाये तो मोती के रूप में झलकती हैं ऐसे ही वाह्य-दृष्टि तुम डालना नहीं, यदि चली जाये तो प्रत्येक वाह्य-आत्मा को भगवान्-आत्मा देखना भो ज्ञानी ! मुझे भी एक योगी ने प्रभावित किया, जब वह आचार्य महाराज के पास आकर कहते हैं कि महाराजश्री ! नमक का त्याग था और मुख में नमक आ गया, अन्तराय करके आया हूँ प्रायश्चित्त दे दो मैं वहाँ बैठा था मैंने सोचा- अहो! जीव की निर्मल दशा देखों आचार्य महाराज भी देख रहे थे किसी को पता नहीं था और वो जीव जाकर प्रायश्चित्त ले रहा हैं सोचा कि बाकी के काम बाद में करना, पहले इसको वंदन करों इसके शरीर की वंदना नहीं, उन भावों का वंदन करूँ जिन भावों के कारण इसके हृदय में सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह महाव्रत विराजमान हैं उन भावों की वंदना कर लेना उन भावों की वंदना भावलिंग की वंदना है, यही भाववंदना हैं मनीषियो! दृष्टि को दृष्टि बनाकर रखना, दृष्टि को कुदृष्टि नहीं बनाना, अन्यथा आँख– विहीन रह जाओगें परमार्थ का लक्ष्य जिनका नहीं बना, वे सभी दृष्टिविहीन हैं जिसके हृदय में श्रद्धा की आँख फूट गयी, विश्वास की आँख फट गयी, आस्था व विवेक की आँख फट गयी, तो ध्यान रखो, सब कुछ फट गयां f चश्मे काम में नहीं आते हैं भो चेतन! अखबार के समाचार तो अनन्त बार प्राप्त किये, अब निज के समाचार को देखं आस्रव तो होगा, उसे कोई रोकनेवाला नहीं हैं जैसी तुम्हारी दृष्टि होगी, वैसा ही होगां पुरुषार्थ सिद्धयुपाय की 145वीं और 146वीं यह कारिका अमृतचन्द्रस्वामी ने बड़ी करुणादृष्टि से लिखी हैं जितनी राग और प्रमाद को बढ़ानेवाली कथाएँ हैं, इन सबको दूर से ही छोड़ दों क्योंकि स्त्रीकथा, चोरकथा, भोजनकथा और राष्ट्रकथा के अलावा समाचारपत्रों में कौन-सी कथा है ? क्वचित-कदाचित हमारी दृष्टि कहीं विकार में न चली जाए, अतः Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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