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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 384 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! सोचना, कि जब आप बोलते हो, तो क्या-क्या बोल देते हो, सोचते हो तो क्या-क्या सोच लेते हो? असंज्ञी जीव से पूछना कि उसे सोचने की शक्ति मिली है कि नहीं? व्यर्थ का सोचोगे, तो सोचने नहीं मिलेगां मन रहित वे ही हुए, जिनने निर्मल नहीं सोचां मन- रहित होना है तो, मनीषियो! अहंत बनों इसकी स्त्री, पुत्रादि की मृत्यु हो जाए, उसका धन नष्ट हो जाए, परन्तु आपके ऐसा सोचने से इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन आपका बिगड़ना सुनिश्चित हैं मनीषियो! 'वरांग-चरित्र' आचार्य जटासिंह महाराज का एक पवित्र ग्रंथ हैं 'वरांग चरित्र' में सौतेली माँ वरांग को घर से निकलवा देती हैं एक बार वह तालाब पर गया तो घडियाल ने पैर पकड़ लियां अहो! घड़ियाल का पकड़ा पैर जल्दी छूट सकता है, पर जिसको कर्म घड़ियाल ने पकड़ लिया, उससे छूटना कठिन हैं मनीषियो! आचार्य जटासिंह स्वामी लिखते हैं कि क्या सूर्य की रश्मियों को कोई मुट्टी में बंद कर सका है ? ऐसे ही किसी जीव के शुभ या अशुभ कर्म को तुम मुट्ठी में बाँध नहीं सकते हों शुभ कर्म है, तो उसकी रश्मियाँ भी खिलेंगी; अशुभ कर्म है, तो उसकी रजनियाँ भी आएँगी 'इसका विनाश हो जाय'-यह अपध्यान चल रहा है और इससे पाप का आस्रव होगां भो ज्ञानी! तूने "अप्पाणं हाणदि अप्पेण आत्मा के द्वारा आत्मा का घात कर दियां चिंतन करके आया था कि मैं दूसरे का विनाश करके आऊँगां मत करो ऐसा अपध्यान, मत करो खोटा चिंतनं आर्त्त व रौद्र ध्यान बढ़ेगा तो दुर्गति को जाना पड़ेगा 'श्रेणिक चरित्र' में सौतेली माँ कहती है कि पुत्र मेरा है, पर जिसका पुत्र था वह कहती है-मेरा हैं विवाद बढ़ गयां राजा श्रेणिक उसको दूर नहीं कर सका तो कहा-बेटा अभय! अब आप निपटाओं पिताजी ! कोई बात नहीं, बेटे के दो टुकड़े किए देते हैं, आधा-आधा पुत्र बाँट देंगें लिटा दिया पुत्र को, चीख पड़ी माँ-नहीं, बेटा इसी का है, आप इसी को दे दों उसने सोच लिया था कि जिएगा, तो देखती तो रहूँगी और यदि दो टुकड़े हो गए, तो न मेरा होगा, न इसका होगां यह सौत नहीं बोल रही थी, माँ बोल रही थीं निर्णय हो गया, बेटा माँ के हाथ में पहुँच गयां भो मनीषियो! ईर्ष्या ही सुत के दो टुकड़े करा देती हैं अहो! जो पंचेन्दिय को कटवा के फिकवा रही होगी, उसकी गोदी का क्या होगा ? स्वयं सोचो, क्योंकि विषय 'समयसार' में जाने का हैं यह कारण भार चल रहा हैं आपका अपध्यान जैसा है, वैसा हो गया होता, तो विश्वास रखो विश्व में एक भी जीव जीवित नहीं मिलता; क्योंकि हर एक व्यक्ति के पीछे एक न एक मारने वाला बैठा हैं अहो ज्ञानियो! तुम्हारे मारने से कोई नहीं मरता, आयुकर्म के क्षय से मरता है, और आयु कर्म तुम्हारे द्वारा दिया गया नहीं हैं "मणि-मंत्र-तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई" दुनियाँ में घूम आना, कर्म का जब विपाक आयेगा तो कोई बचाने वाला नहीं मिलेगां जब पुण्य का सितारा चमकता है, तो शत्रु के घर में भी तुझे सिंहासन मिलता हैं जब चाण्डाल ने चतुर्दशी के दिन हिंसा नहीं की, तो सम्राट ने उसको बोरे में बांध कर नदी में फिकवा दियां अहो सम्राट! तुम बोरे में बांध सकते हो, नदी में फिकवा सकते हो; लेकिन ध्यान रखो, किसी को मार नहीं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : [email protected] or [email protected]
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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