________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 383 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
'आत्मा का आत्मा से घात मत करो'
भूखननवृक्षमोट्टनशाड्वलदलनचाम्बुसेचनादीनिं निष्कारणं न कुर्याद्दलफलकुसुमोच्चयानपि चं 143
अन्वयार्थ : भूखनन-वृक्षमोट्टन = पृथ्वी खोदना, वृक्ष उखाड़नां शाड्वलदलन = अतिशय घासवाली जगह रोंदनां चाम्बुसेचनदीनि = पानी सींचना आदि और दलफलकुसुमोच्चयाम अपि = पत्र, फल, फूल तोड़ना भी निष्कारणं न कुर्यात् = प्रयोजन के बिना न करें
असिधेनुविषहुताशनलाङ्गलकरवालकार्मुकादीनाम् वितरणमुपकरणानां हिंसायाः परिहरेद्यत्नात् 144
अन्वयार्थ : असिधेनु विष हुताशन = छुरी, विष, अग्निं लागल करवाल = हल, तलवारं कार्मुकादीनाम् = धनुष आदिं हिंसायाः उपकरणानां = हिंसा के उपकरणों का वितरणम् = वितरण अर्थात दूसरों को देनां यत्नात परिहरेत् = यत्न से छोड़ दें
मनीषियो! तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने संकेत दिया है कि बिना प्रयोजन/व्यर्थ पाप के काम मत करों वचन से भी व्यर्थ मत कहों एकेन्द्रिय जीव से पूछ लेना कि वचन वर्गणाएँ कितनी महत्वशाली होती हैं ? जब एक लकड़हारा कुल्हाड़ी लेकर जाता है तो वृक्ष को तीव्र वेदना होती है, परन्तु वह अपनी वेदना को प्रकट नहीं कर पातां यह है कर्मफल चेतना मनीषियो कभी कर्मफल चेतना भोगने के विचार मन में मत लाना; भोगना ही है तो उस परम ज्ञानचेतना की ओर बढ़ों जिनवाणी माँ कहती है कि जो प्राणों से अतिक्रांत शुद्धात्मा है, वह परम ज्ञानचेतना का भोक्ता हैं सारे स्थावर जीव कर्मफल-चेतना भोग रहे हैं शुद्धज्ञान चेतना का भोक्ता तो एकमात्र सिद्ध परमेष्ठी हैं, जो द्रव्य प्राणों से अतिक्रांत है और शुद्ध भाव प्राण से युक्त है, उनसे किसी के द्रव्य व भाव प्राण की हिंसा नहीं होती
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com