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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 360 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो मनीषियों! निज की ग्रंथि को खोलो, क्योंकि यहाँ तत्त्व की बात सुन रहे हों समझना, निग्रंथ वीतराग मुनिराज के चरणों में जीवंधर ने प्रश्न किया, प्रभु! मैंने ऐसा कौन-सा पाप किया था, जिसके प्रभाव से मुझे अपनी माँ का वियोग सहन करना पड़ा और मेरे जन्म होने के पूर्व ही मेरे पिता का वियोग हुआ पिता सत्यंधर महाराज को उनके मंत्री काष्ठांगार ने मार डाला, माँ विजया को मयूर विमान ने श्मशान में छोड़ा. जहाँ लोगों के अंतिम संस्कार किये जाते हैं वहाँ मेरा जन्म हुआ वीतरागी मुनि कहने लगे जीवंधर कुमार इसमें तेरे जनक-जननी का ही दोष नहीं, तेरा भी दोष थां भो ज्ञानी ! पंडित आशाधरजी ने 'सागार धर्मामृत' में लिखा है प्राणतेऽपि न भक्तव्यं, गुरु साक्षिश्रितं व्रतम् प्राणांतस्तत्क्षणे दुःखं व्रतभंगो भवे भवें 52 - प्राणों का अंत भी क्यों न हो जाये, गुरु की साक्षी में जो व्रत लिए हैं उन्हें भंग मत कर देना; क्योंकि जिसने व्रत को भंग किया है, वह भव-भव में दुःख को प्राप्त हुआ है! भो ज्ञानी! जिसके निमंत्रण-कार्ड पर लिखा हो कि तुम्हारे आने तक की व्यवस्था है, उसे जैन किसने कह दिया है ? ओहो ! कम से कम तुम इतना नियम आज ले लो कि आज से अपने कार्ड पर यह नहीं लिखवाएंगे "स्वरुचि-भोज शाम पाँच बजे से आपके आगमन तकं” एक ओर 'मंगलम् भगवान् वीरो" छाप रहे हो और दूसरी तरफ आप रात्रि में भोजन का निमंत्रण दे रहे हो कि आपके आगमन तक की व्यवस्था हैं भो चेतन आत्माओ ! केवली के ज्ञान में तुम्हारी करतूतें सब झलक रही हैं और तुमको स्वयं मालूम है कि हम क्या कर रहे हैं ? आश्चर्य हैं बैनर लगाने की, परिचय देने की आवश्यकता नहीं, विदेशों में तुम्हारी पहचान है ! रात्रि - भोजन के त्याग का तात्पर्य यह नहीं है कि झुरमुट संध्या हो रही है, फिर भी खाते चले जा रहे हैं बोले- अभी तो दिख रहा हैं अरे! यह मायाचारी भी नहीं करनां रात्रि भोजन का त्याग यानि कि सूर्यास्त के दो घड़ी पहले भोजन हो जाना चाहिए संध्या काल में ही तो जीव की उत्पत्ति अधिक होती हैं सोते जा रहे हैं और भोजन करते जा रहे हैं, सीधा का सीधा पेट में रखां पच नहीं पा रहा है तो किसी को गैस के रोग हो रहे हैं, तो किसी का शरीर स्थूल हो रहा हैं भगवान् महावीर स्वामी ने वीतराग विज्ञान में पहले ही कह दिया है कि आप सोने के लगभग तीन घंटे पहले भोजन कर लों सूर्यास्त के अड़तालीस मिनट पहले भोजन कर ही लेना चाहिए जैन आगम कहता है कि आप को चार प्रकार के आहार -पानी का और पाँच पापों का त्याग करके रात्रि - विश्राम करना चाहिएं कहीं धड़कन बढ़ गई और अंत हो गया तो कम से कम सल्लेखना के साथ तो मरोगे, त्याग के साथ तो जाओगें Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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