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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 359 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
" मत बनो निशाचर"
रात्रो भुञ्जानानां यस्मादनिवारिता भवति हिंसां हिंसाविरतैस्तस्मात् त्यक्तव्या रात्रिभुक्तिरपिं 129
अन्वयार्थ
यस्मात् रात्रो
भोजन करने वालों के अनिवारिता हिंसा
क्योंकि रात्रि में भुञ्जानानाम् जिसका निवारण न हो सके ऐसी हिंसां भवति = होती हैं तस्मात् = इसलिएं हिंसाविरतैः = हिंसा से विरक्त होने वाले पुरुषों को रात्रिभुक्तिः अपि = रात्रि को भोजन करना भीं त्यक्तव्या = त्याग करना चाहिए
=
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रागाद्युदयपरत्वादनिवृत्तिर्नातिवर्तते हिंसां
रात्रि दिवमाहरतः कथं हि हिंसा न संभवतिं 130
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अन्वयार्थ
अनिवृतिः = अत्याग भाव (भोजन का त्याग नहीं करना) रागाद्युदयपरत्वात् रागादिक भावों के उदय की उत्कटता सें हिंसाम् = हिंसा कों न अतिवर्तते = उल्लंघन करके नहीं प्रवर्तते हैं रात्रि दिवम् = रात्रि और दिन कों आहरतः = आहार करनेवालों के हि हिंसा = निश्चयकर हिंसां कथां न संभवति = कैसे संभव नहीं
होती ?
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अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र दिया कि राग का विनाश करानेवाली वस्तु वैराग्य भाव है, जो वीतराग भाव का दिग्दर्शन कराने वाला हैं वैराग्य भाव राग के अभाव से हुआ है तो पर-द्रव्य से ममत्व नियम से हटेगा अर्थात् पर-द्रव्य से ममत्व हटा है, तो वैराग्य निश्चित हैं जिसके पास वैराग्य है, उसके पास चारित्र आयेगा और जिसके पास चारित्र आयेगा, उसके पास नियम से वीतरागता आयेगीं
मनीषियो! आज सबसे प्रबल रोग कोई है, तो देह का हैं जिस दिन डाक्टर कहता कि उपचार संभव नहीं है, तब कहते हैं- डाक्टर साहब! आप जितना चाहे धन ले लो, लेकिन रक्षा कर लों
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