________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 354 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानी! साधना से भी ज्यादा शक्ति भोगों में लगती हैं साधना में तो शक्ति क्रमशः बढ़ती है और भोगों में शक्ति क्रमशः घटती जाती हैं पंचेद्रिय भोग वही भोग सकता है, जिसके शरीर में ताकत है और वही पंचमहाव्रतों का पालन भी कर सकता हैं कमी तेरे पुरुषार्थ की हैं किसने मना किया ? अहो! जीवन भर भोगों की भट्टी में झुलसे हो, अब तो कुछ सोच लों बड़ा आश्चर्य है कि पाप करने के बाद पश्चात्ताप भी नहीं हैं
भो ज्ञानी आत्माओ! यह पर्याय अरहंत की है, यह पर्याय सिद्ध की है और इस पर्याय को आपने भोगों में लगा दियां आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि अपनी शक्ति के अनुसार संपूर्ण अंतरंग परिग्रह को छोड़ देना अहो! खाने के लिए कितना कमाना पड़ता है ? बहुत कम एक दिन मैंने आपको बताया था कि जो मकान आपने बनाये हैं, उनमें कंगूरे घर के ऊपर क्यों बना दिये ? व्यर्थ का व्यय किया इंट, चूने में देखो, छिपाना नहीं, हकीकत कुछ और हैं इतना सुंदर भवन इसलिए बनाया है कि अभी तो उसमें रह लेता है, लेकिन जब रौद्र-परिणामों से मरण करूँगा और फिर कौआ बनकर राग के वश जब घर में आऊँगा, तो बैठने को कोई स्थान देगा नहीं अतः मैं अपनी व्यवस्था पहले से कर रहा हूँ
भो ज्ञानी आत्माओ! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि तुम महाव्रती नहीं बन सकते हो तो अणुव्रती तो बन ही जाना, देशव्रती तो बन ही जाना; यदि वास्तव में अपनी आत्मा का कल्याण चाहते हो तों
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज
एवं भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com