________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 350 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "करो भावों की विशुद्धि मार्दव व शौच धर्म से"
प्रविहाय च द्वितीयान् देशचरित्रस्य सन्मुखायातः नियतं ते हि कषायाः देशचरित्रं निरुन्धन्तिं 125
अन्वयार्थ : च = और द्वितीयान् = दूसरे कषाय (अर्थात् अप्रत्याख्नावरणीय क्रोध,मान,माया, लोभ) कों प्रविहाय =छोड़करं देशचरित्रस्य = एकदेशचारित्र के सन्मुखायातः = सन्मुख आता हैं हि ते कषायाः = क्योंकि वे कषायं नियतं = निश्चितरूप से देशचरित्रं = एकदेशचारित्र कों निरुन्धन्ति = रोकते हैं
निजशक्त्या शेषाणां सर्वेषामन्तरङ्ग रङ्गनाम् कर्तव्यः परिहारो मार्दवशौचादिभावनया 126
अन्वयार्थ : निजशक्त्या = अपनी शक्ति से मार्दवशौचादिभावनया मार्दव, शौच, संयमादि दशलाक्षणिक धर्म के द्वारां शेषाणां सर्वेषाम् = अवशेष सम्पूर्ण अन्तरङ्ग रङ्गनाम् = अन्तरंग परिग्रहों का परिहारः कर्तव्यः = त्याग करना चाहिये
मनीषियो! आत्मा की सत्य-सत्ता को समझना है तो असत्य का विसर्जन करना अनिवार्य हैं आचार्य कुंदकुंददेव ने 'प्रवचनसार'जी में लिखा है कि संपूर्ण आगम को आप अवधारण करना, लेकिन जहाँ परमाणु-मात्र भी राग दृष्टि है, वहाँ मोक्ष नहीं हैं इसलिए मुमुक्षु वही है, जो अंतरंग और बहिरंग से राग का त्यागी हैं आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने कहा है कि अपने से पूछो कि रागदशा कितनी है, वैराग्यदशा कितनी है? यदि वैराग्यदशा का भाव नहीं है, तो वीतरागदशा की अनुभूति कहाँ ? जिसे वीतराग शब्द का आनंद है, जिनवाणी की भाषा में वह भी परिग्रही हैं 'वीतराग' शब्द का राग भी जब परिग्रह हो सकता है, तो 'विषयों का राग, वीतराग भाव कैसे हो सकता है ? अरे! वीतरागभाव का जनक वैराग्य भाव है, बिना वैराग्य के चारित्र नहीं और बिना चारित्र के वीतरागभाव नहीं यह अनवरत हैं अतः, पहले वैराग्यभाव का जन्म होगा,
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com