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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 304 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
लेना और दस धर्म का काँटा लगा देना, उसमें सत्य-धर्म हैं जो सत्य को नहीं मानता है, जिनवाणी कहती है कि वह चोर है, डाकू हैं अतः कभी किसी के साथ छल नहीं करना, झूठ नहीं बोलनां
भो ज्ञानी! झूठ बोलने और छल से बचने के लिए सात स्थानों पर मौन का कथन हमारे आगम में हैं आप जो बोल रहे हो, वह शब्दागम हैं आप गाली दे रहे हो, रोष में बोल रहे हो, तो आप शब्दागम का दुरुपयोग कर रहे हों जब आप भोजन कर रहे थे, उस समय मुख जूठा था, अशुद्ध थां अशुद्ध मुख से आपने कुछ बोला तो आपने जिनवाणी का अवर्णवाद कियां मौन से भोजन करने लगें तो बहुत सारी विडम्बना समाप्त हो जायें जो भोजन करते-करते बोलता है, उसको दीनता प्रकट होती हैं मौन से खाते हो तो सन्तोष आता है, तुम्हारी हीनता प्रकट नहीं होती हैं इसलिये जैन-योगी सर्वथा मौन से ही चर्या करते हैं माँगते भी नहीं और संकेत भी नहीं करतें
भो ज्ञानी! स्नान के समय यदि मुख से बोल रहे हो तो पानी मुख में चला जायेगां अतः स्नान के समय श्रावक मौन रहता हैं मल-विसर्जन के समय वह क्षेत्र कितना अशुद्ध होता है? दाँत और मुख बिलकुल बन्द रखना चाहिये, जिससे अशुद्ध वर्गणायें आपके मुख में न जा सकें मनीषियो! वमन हो जाये तो मौन ले लों मैथुन क्रिया के समय मौन रहना चाहिये, क्योंकि इससे बड़ा पापाचार क्या होगा जहाँ नवकोटी जीवों का घात हो रहा है और तुम प्रसन्न हो रहे हो? भगवान् जिनेन्द्र की पूजन-भक्ति के समय भी मौन रहना चाहियें जितनी जिनभक्ति कर रहे हो, उतना ही बोलना चाहिए
भो चेतन! मौनी मूक नहीं हैं मूक तो पशु होते हैं साधक मूक नहीं, मौनी होता हैं देखो, सात सौ वीतरागी मुनि कैसे मौन हुये थे? जिस जीव की वाणी मनोहर होती है, वह निर्मल मौन व्रत का पालन करता हैं उसका सत्य भी अपने आप पलता हैं जितना ज्यादा बोलोगे, उतना ही झूठ बोलने में आयेगां हमारे आगम में सत्य-व्रत में मौन को भी व्रत कहा हैं बहत अच्छा होता कि जब बिजली पर टैक्स चल रहा है, पानी पर टैक्स चल रहा है, तब वाणी पर और टैक्स लग जातां लेकिन आप लगाओ न लगाओ, हमारे जैनशासन में तो लगा हैं देखो, सत्यव्रत, सत्य-अणुव्रत, सत्य-महाव्रत, सत्य धर्म, वचन गुप्ति और भाषा समिति यह सभी व्रत वाणी पर ही क्यों लगाये गये हैं? क्योंकि मालूम था आचार्य भगवन्तों को, तीर्थंकरों को, कि सबसे ज्यादा उपद्रव वाणी से ही होते हैं लोक में जितने विसंवाद होते हैं, वह सब वाणी से होते हैं आचार्य सोमदेव सूरि ने लिखा है कि जैसे निग्रंथ योगी का कमण्डल होता है, वैसे ही राष्ट्र के, समाज के परिवार के मुखिया को खजांची होना चाहियें देखो, जब कमण्डल में पानी भरा जाता है, तो बड़े मुख से भरा जाता है और टोंटी से
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