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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 296 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 विदिशां यहाँ से बनारस में जाकर समन्तभद्र स्वामी ने कहा था कि मैं भेलसा से होकर आया हूँ काँचीपुरम में मैंने शास्त्रार्थ किया हैं कर्नाटक से, तामिलनाडू से आये थे और विदिशा से निकले थे, और बनारस में जाकर शास्त्रार्थ किया थां यह वही भेलसा है जहाँ अनेक सम्राट होकर चले गये, परन्तु पता ही नहीं हैं तुम अंहकार की धरा पर धरे रह गयें ध्यान रखो, माटी के पुतलो, माटी में मिल जाओगें यह धरा तुम्हारे साथ नहीं जायेगी इसीलिए आचार्य भगवान् ने कहा कि जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही कहनां पुरुषार्थ सिद्धि सुन रहे हो, आज यह कारिका अच्छी तरह से समझकर जानां क्योंकि दुनिया को सुनने में कल्याण नहीं है, कल्याण तो जिनवाणी के सुनने में हैं मनीषियो! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि सत्य को समझने के लिए शान्त होना पड़ेगा अतः सत्य को वही समझ सकता है जो तटस्थ होता हैं मध्यस्थ व्यक्ति ही सत्य को समझ पाता हैं जो जीव किसी धारा में बहता है, लहरों में बहता है, वह कभी भी सत्य को नहीं समझ सकतां विपरीत कारण से विपरीत कार्य करेगा, तो, मनीषियो! यह कारण कार्य विपर्यास हैं आप लोगों के हाथ में पेन हैं यदि कोई व्यक्ति पेन से कान खुजला रहा है, तो वह जिनवाणी के उपकरण का अनादर कर रहा हैं यह कारण-कार्य विपर्यास हैं इसीलिए भगवान् कह रहे हैं कि पहले विपरीतता को समझ लो, फिर सभी बातें समझ में आयेंगी अहो! सामनेवाले को दोष देने के पहले अपनी समझ का दोष देख लेनां मनीषियो! विश्व में कोई दोषी है ही नहीं, हम किसको समझायें? सब के अपने अपने कर्म हैं इसलिए गर्हित वचन बोलना, सावद्य (हिंसा सहित) वचन बोलना, अप्रिय वचन बोलना, यह तीन प्रकार का असत्य हैं मनीषियो! आपने पहला असत्य अस्ति को नास्ति कहना समझा, दूसरा असत्य है नास्ति को अस्ति कहना, तीसरा असत्य है गर्हित वचन बोलना, याने हिंसाजन्य वचन बोलना और अप्रिय वचन बोलनां तीसरा असत्य जो गर्हित है उसको सुनों देखो भइया! मैं सत्य कह रहा हूँ, वह भैया आपके बारे में ऐसा बोल रहे थे अरे भैया! तुमने असत्य तो पहिले ही बोल लिया, चुगली करना ही असत्य हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं पैशन्य कर्म, याने चुगली करना असत्य हैं भो ज्ञानी! अशुभ भाव होते हैं तो अशुभ बंध होता हैं क्यों ऐसे काम करते हो, दूसरों के घर का भांड फोड़ आते हों कभी ऐसा काम नहीं करनां आजकल तो फोन घुमा दिया, मालूम चला कि यहाँ कुछ था ही नहीं, फोन पर बड़े बड़े युद्ध हो चुके झूठे लेख लिख दिये, इससे अशुभ आयु का बंध होगा, दुर्गति में जाना होगां हँसी नहीं करना, हँसी का परिणाम देख लो, महाभारत हो गया थां हास्य भी असत्य हैं मनीषियो! अहंकारयुक्त भाषण गर्वीली भाषा का उपयोग, यह भी असत्य हैं कर्कश, ओहो! कांटे चुभाओ तो इतनी पीड़ा नहीं होती, कुछ लोगों के ऐसे शब्द होते है कि कांटे से ज्यादा कसते हैं तथा पत्थरों-जैसे कर्कश लगते हैं कुछ लोगों की ऐसी भाषा होती है मानो यह वचनों के बाण छोड़ रहे हैं वह मिथ्या पूर्ण, संशय में डालने वाली भाषा हैं अरे! सुनो- सुनो, ऐसा हो गया और धीरे से भाग गये, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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