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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 295 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जिससे हित की प्राप्ति हो, अहित का परिहार हो, वही प्रमाण है, वही सम्यकज्ञान हैं यही तो न्याय हैं 'भगवती आराधना' में आचार्य शिवकोटी महाराज ने लिखा है, अहो चेतन! हाथ में दीपक इसलिए है कि गड्ढे में न गिरूँ, किसी सर्प पर पैर न पड़े, मल पर पैर न पड़ें दीपक लेकर मल पर फिसल गये तो दीपक ने तेरे लिए क्या किया? अहो चैतन्य आत्माओ! यह ज्ञान दीप इसलिये है कि भोगों के मल पर न गिर जाऊँ, कषाय के गड्डे पर न गिरूँ और वासनाओं के सर्प से न डस जाऊँ यदि तीनों काम हो रहे है तो ज्ञानदीप नहीं हैं अहो! अन्धे को दिखाने के लिए दीप नहीं होता, बहरों को सुनाने के लिए गीत नहीं होतां भो चेतन आत्माओ! ध्यान रखो, मूखों के लिए शास्त्र नहीं होतें भो ज्ञानी! नीतिकार लिख रहे हैं कि बढ़िया पकवान का थाल लगाकर लाओ और सूअर के सामने रख दो, किन्तु उसको तो नाली में ही जाना हैं उसी प्रकार अज्ञानी को शास्त्रों के प्रसंग सुनाओगे, तो वही होगां वे स्वयं सूखे में नहीं बैठ पाते हैं और दूसरे को भी सूखे में नहीं बैठने देतें जैसे भैंसा तालाब में पहले अच्छे से मचा लेता है और उसी में लघुशंका कर लेता है, फिर पीता हैं अहो! यही अज्ञानी की दशा हैं भो चेतन! विश्व में अगर सगा सखा कोई है तो सम्यकज्ञान ही हैं मित्रता ज्ञान से ही होती है और बाहर के मित्र भी ज्ञान से ही मिलते हैं मित्र से मित्रता बनाकर रखना भी ज्ञान का ही काम हैं गुरु भी मिलते हैं तो ज्ञान से मिलते हैं और गुरु को बनाकर रखना यह भी सम्यज्ञान का ही काम हैं विपरीतता झलकने लग जाये तो गुरु में गुरु नजर नहीं आते, प्रभु में प्रभु नजर नहीं आतें अतः विवेक सर्वत्र आवश्यक है और जहाँ विवेकशून्यता आ गई, ध्यान रखो, वहीं आप नीचे गिर जाओगें इसीलिए अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैंसत्य को समझों पर्याय सत्य नहीं है, ज्ञान सत्य है, दर्शन सत्य हैं पर्याय त्रैकालिक साथ नहीं जाती, पर्याय क्रमवर्ती है, छूटने वाली हैं जब तक उबाल नहीं आ जाता है, तब तक हँडिया पर पारा रखा है और उबाल आया कि वह भाग जाता हैं जब तक यमराज नहीं आया तब तक पर्याय कहती है हम आपके तथा आप मेरे, जैसे ही आयु-कर्म आया वह भाग जाती हैं लेकिन गुण त्रैकालिक होते हैं ऐसे ही ज्ञानदर्शन शक्ति कहती है कि चाहे निगोद चलना, चाहे नरक चलना, हम तुम्हारे साथ होंगे, क्योंकि गुण त्रैकालिक- सत्तावाला है जो कभी छूटता नहीं है, पर्याय नियम से छूटेगी हे भूपतियो! आपने अपने आपको पति जरूर कहा है कि मैं भू–पति हूँ , पर उस कन्या से तो पूछ लो, उसने आपको पति चुना कि नहीं चुना? वह तो अभी तक कुँवारी हैं पति-पति कह कर पतन को प्राप्त हो गये, लेकिन वह भूमि जैसी है, वैसी हैं तुम क्यों अहंकार में डूबे हो कि मैं भू-पति हूँ शीतलनाथ स्वामी को तो आप देख ही रहे हैं, जब वे ही यहाँ नहीं बचे तो तुम क्या हो? आचार्य समन्तभद्रस्वामी-जैसे संत इस विदिशा नगरी में आ चुकें उनके चरणों से पवित्र हुई है यह नगरी Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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