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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 277 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानी! कर्म की विचित्रता में राजवैद्य भी राजा की रक्षा नहीं कर पातें इसीलिये आप औषधि का भी विकल्प छोड़ दों अब कहना, किसके लिये? आप पंचपरमेष्ठी की पूजा कर रहे हो, किसके लिये? अपने कर्मों का क्षय करने के लिये आपने व्रत स्वीकार किये हैं, अपने कर्म क्षय के लिये आप जो प्रतिमा लेकर आये हैं, समाज के लिये नहीं तो किसके लिये? त्यागी-व्रती फर्श पर नहीं बैठते, वे आये और धीरे से पैर से फर्श उठाकर फेंक दिया, वहाँ आपको ध्यान रखना था कि, अहो! मेरा संयम कितना निर्मल है? मैं दूसरे का असंतुष्ट करने के लिये नहीं आया हूँ आपने भोजन करने के लिये सोला के वस्त्र पहने और नाती ने धोती छ ली, अब बताओ वह सोला किसके लिये किया था? भोजन के लिये, कि भावों के लिये? आपने धीरे से बच्चे के गाल पर चाँटा मार दिया, किसलिये? क्या सोला बन जायेगा, इसीलिये? सोला तो करना ही चाहिए, लेकिन भावों के सोलों का भी ध्यान रखना चलो अब तो छ ही लिया, धो ही सकते हैं, लेकिन दूसरों के परिणामों को कलुषित मत करों
भो ज्ञानी! अभी तो आपने कर्म का धर्म सुना हैं धर्म को धर्म में कुछ भी नहीं करना पड़तां जहाँ कुछ न करना पड़े, उसी का नाम है धर्म इसीलिये आप मुमुक्षु कहला रहे हैं, किसके लिये? विघटन करने के लिये? परस्पर के वात्सल्य को नष्ट करने के लिये? समाज में बिखराव करने के लिये? अहो मनीषियो! मुमुक्षु स्वयं के लिये बने हैं, मोक्ष की इच्छा के लिये इतने सारे प्रश्न जब आप एकसाथ करोगे, तो कितने ही दिन क्या, पूरी पर्याय निकल जाए तो भी चिंतन समाप्त नहीं होगां अब उसको समेट लो, पर इतना ध्यान रखना, 44वीं शक्ति सम्प्रदान-शक्ति कहती है कि एकान्त में जब तुम जाओगे और वहाँ सोचना कि यह सबकुछ मैंने बुना है, तो हे मकड़ी! बताओ ये जाल किसके लिये है? देखना, यह मकड़ी जितना खाती है, उतना जाल फैला देती हैं उसमें जीव आकर फंस जाते हैं और सब मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं अहो मकड़ी! तूने ताना-बाना बुना है, किसके लिये? और अंत में उसी में फँसती है स्वयं के लिए अहो मनीषियो! ये भवन किसके लिये? प्रभु मेरी अर्थी यहीं से निकलेगी क्या इसीलिये? बुरा मत मानना, क्योंकि जिसे तुम मरघट कहते हो, वो
त्य हैं मरघट शब्द अपने आप में कहता है जिस घट पर मरा जाये, उसका नाम मरघट हैं पर उसे कभी मरघट नहीं कहते हों उस जलाने के स्थान को जलघट कहना चाहियें जो तुमने भवन खड़े कर लिये, किसके लिये? अब प्राप्त करो उत्तरं जिस दिन सत्य को कहने लगोगे, तो तुम भगवान् बन जाओगें यदि हमने 44वीं शक्ति को समझ लिया तो हमें हमारा असत्य मिटाना पड़ेगां इसीलिये आज घर में बैठकर जरूर सोचना कि यह सब होता है, किसके लिये? इतना ही सोचना है, ज्यादा सोचना ही नहीं है अपने कों अतः आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि यह हिंसा के कर्म छोड़ दों ये किसके लिए कर रहे हो?
मनीषियो! अज्ञानता के विश्वासों से दर्शन खड़े हो जाते हैं, यानि समझते जाओ और हृदय की ग्रंथियों को सुलझाते जाना कि गुरुदेव ध्यान में विराजे हैं ध्यान रखना, गुरु तो सबके हैं गुरु समाधि में बैठे
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