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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 275 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 लोकोत्तर चिंतन होता हैं एक पिता अपने बेटे को घर का मुखिया बना देता है अथवा आप उसे नगर का मुखिया बना देते हैं तो उसके चितवन में वृद्धि हो जाती हैं इसी प्रकार सम्राट की दृष्टि में राज्य व्यवस्थाएँ आयेंगी, जबकि संत के चितवन में संपूर्ण विश्व पुत्र के समान दिखता है, क्योंकि उसके चितवन में नगर, देश, राष्ट्र की सीमायें नहीं होती हैं; जननी, परिजन की सीमायें नहीं होती हैं, उसकी दृष्टि में प्राणीमात्र की सीमायें होती हैं इसीलिये निग्रंथों की शैली में और सग्रंथों की शैली में बहुत अंतर होता हैं निग्रंथ निज की बात करते हैं भो ज्ञानी! भगवान् कुंदकुंद देव के 'समयसार' ग्रंथ पर आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने 'आत्म-ख्याति टीका लिखी, जिसमें सैंतालीस शक्तियों की चर्चा की हैं अनंत शक्तियों को उद्भव कराने वाली वह शक्तियाँ प्रत्येक जीव के अंदर हैं उन सैंतालीस शक्तियों में चवालीसवीं शक्ति सम्प्रदान–शक्ति हैं सम्प्रदान क्या कह रहा है? "किसके लिए"? आप कहते हो "नमः श्री समयसाराय", समयसार को नमस्कारं किसके लिये नमस्कार? स्वानुभूति में जो प्रकाशित होता है, ऐसे समयसार के लिये नमस्कार हैं वह स्वभाव किसके लिये? स्वयं के लिये, स्वयंभू के लिये स्वयंभू संज्ञा किसके लिए है? भोग के लिये, योग के लिये? नहीं, उपयोग के लिए मनीषियो! ध्यान रखना, स्वयंभू जब भी बनता है उपयोग ही बनता है, स्वयंभू में योग नहीं होता हैं स्वयंभू के तो मात्र उपयोग ही होता हैं सयोगकेवली तक ही योग है, अयोगकेवली को योग नहीं हैं भो ज्ञानी! अब आपको 44वीं शक्ति का एकान्त में बैठकर चिन्तन करना हैं धन कमा रहे हो, संतान को जन्म दिया है, किसके लिये? ये संबंध स्थापित कर रहे हो, किसके लिए? तूने दूसरे को गाली दी, किसके लिये? सम्मान करा रहे हो, किसके लिये? सोचो तनिक, जिसके लिए तुम कहना चाहते हो वह कुछ भी नहीं चाहता हैं लेकिन लोक में देखो कितना सम्प्रदान जोड़कर रखा है? आपने पुत्र के लिये भवन खड़ा किया, उसको खोदते समय नींव में चुहिया निकली थी, उसे आपने उठाकर बाहर रख दिया था उसके बच्चे भी थे, उसका परिवार भी थां उसके परिवार को आपने बिगाड़ा है, किसके लिये? आपने खेत में हल चलाया, किसके लिये? आचार्य अमितगति स्वामी लिख रहे हैं-अहो मनीषियो! आषाढ़/ श्रावण के महीने में ये भूमि गर्भनी हो जाती है, अनंत जीव अपने गर्भ में रखती है और तुम हल को चलाकर सबका गर्भपात करा देते हों गर्भनी माँ के गर्भपात कराने में जो हिंसा लग रही है तुम्हें भी वैसी ही हिंसा लगती हैं यह किसके लिये? अहो किसानो! जब हल चलता है तो लाखों जीव एक-एक इंच पर मरते हैं अहो! ये किसके लिये? भो चेतन! अभी तो सम्प्रदान की ही चर्चा कर रहे हैं इसके अतिरिक्त षट्कारक तथा छियालीस शक्ति और हैं यह किसके लिये? जब तू भोग-दृष्टि को लेकर चला था, उस प्रदेश पर नवकोटि सम्मूर्च्छनों का घात तूने किया, किसके लिये किया? जो संतान जन्म लेगी, वो किसके लिये? इसीलिए सम्प्रदान कह रहा है, किसके लिये? तुम जो कुछ Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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