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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 273 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
ऐसा क्यों कह रहे हो? अब तो चले ही गये, अब भी तुम हिंसा कर रहे हों आचार्य महाराजको यह इसलिए लिखना पड़ा कि लोगों के ऐसे भी विचार होते हैं यह भी बहुत प्रबल रूढ़ी है कि सुख बड़े कष्टों से मिलता है, इसीलिए जो सुख से मर जाये तो सुखी होता है, दुःख से मरेगा तो दुःखी होगां ऐसा आप कभी मत सोचनां क्योंकि वर्तमान में तुम सुखी हो, यदि अशुभ कर्म किये तो दुःखी होंगे और वर्तमान में तुम दुःखी हो, यदि अच्छे काम किये तो सुखी हो जाओगें लेकिन यदि ऐसा सोचकर कि यह अभी बड़ा सुखी है, यदि इसको अभी खत्म कर दो, तो वह हमेशा सुखी ही बना रहेगा-यह पुरानी बातें मिथ्यात्व में रंगी हुई हैं ऐसे कुतर्करूपी खड्ग (तलवार) के द्वारा सुखी जीव का कभी घात नहीं करें ऐसे भी सम्प्रदाय हुए हैं जो ऐसा मानते थें गुरु समाधि में बैठे हैं, उसी समय मार दो, जिससे वे सिद्ध बन जायें आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने आपको जो हेतु दिये हैं, इन हेतुओं पर विवेक से चिन्तन करना और कभी भी अशुभ भावों का प्रयोग नहीं
करना
भगवान श्री आदिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, रानीला, हरियाणा
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