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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 269 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "दुःखी एवं सुखी जीवों का घात करना हिंसा है"
बहुदुःखासंज्ञपिताः प्रयांति त्वचिरेण दुःखविच्छित्तिम् इति वासना कृपाणीमादाय न दुःखिनोपि हन्तव्याः 85
अन्वयार्थः तु = और बहुदुःखांसज्ञपिताः = बहुत दुःख से सताये हुए प्राणी अचिरेण जल्दी दुःखविच्छितिं = दुःख नाश कों प्रयांति = पा जाएँगें इति बासना कृपाणी = इस प्रकार विचार- रूपी तलवार कां आदाय = लेकरं दुःखिनःअपि न हंतत्याः =दुःखी जीव भी नहीं मारने चाहिएं
कृच्छ्रेण सुखावाप्तिर्भवंन्ति सुखिनो हताः सुखिन एवं इति तर्कमंडलाग्रः सुखिनां घाताय नादेयः 86
अन्वयार्थः सुखावाप्तिः = सुख की प्राप्तिं कृच्छ्रण भवति =बड़ी कठिनता से होती हैं सुखिनः हताः = सुखी ही होती हैं सुखिनः एव भवन्ति = सुखी ही होते हैं इति = इस प्रकारं तर्कमंडलाग्र = कुविचार रूप तलवारं सुखिनां घाताय = सुखी पुरुषों के घात के लिये न आदेयः =नहीं पकड़ना चाहिये
मनीषियो! अन्तरंग के भ्रमों को शमन करने की विद्या, माँ जिनवाणी, अमृत का काम करती हैं विपरीत-श्रद्धान, लोक-रूढियाँ, अंधविश्वास सभी का शमन करती जिनवाणी माँ कह रही है कि प्रत्येक जीव अपने शुभ-अशुभ कर्मों के योग से उत्पन्न हुए और नष्ट हो रहे हैं अतः आप करुणा करो, हिंसा भी मत करो, और जो हिंसा कर रहे हैं, उनकी हिंसा भी मत करो और जो हिंसा नहीं कर रहे, उनकी भी हिंसा मत करों
भो ज्ञानी! गन्ना पेरने की मशीन में ऊपर व नीचे दो बेलन लगे होते हैं यदि उनमें अंतर पड़ जाये तो रस अच्छे से नहीं निकाल पाओगें ऐसे ही अन्तरंग व बहिरंग चारित्र के बीच में अंतर पड़ जाए तो भेदविज्ञान द्वारा शुद्धात्मानुभूति का वह समरसी-भावरूप रस निकलनेवाला नहीं अतः कठोरता में ही रस
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