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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 263 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो मनीषियो ! आज भगवान् पार्श्वनाथ स्वामी का निर्वाणदिवस हैं कौन कहता है कि भगवान् पारसनाथ स्वामी ने कमठ का उपसर्ग सहा हैं भो ज्ञानी ! जिस पर उपसर्ग किया था, वह पारसनाथ नहीं, मुनिराज थें क्योंकि मुनि पारसनाथ पर उपसर्ग हो सकते हैं, पर प्रभु पारसनाथ पर उपसर्ग नहीं हो सकतें केवली पर उपसर्ग नहीं होते, छदमस्थ अवस्था में ही उपसर्ग होते हैं तत्व की गहराइयाँ एवं तत्त्व की दृष्टि देखो, यही तो समयसार हैं अहो! पूरे दस भव जिसे सताया हो, उस अंतर - आत्मा में कितनी शक्ति होगी? जिस आत्म-तत्त्व ने किंचित भी आह नहीं भरी अरे ! चीखता-चिल्लाता वह है, जिसे चैतन्य की सत्ता का भान नहीं होतां जिसे अपने प्रभु का ज्ञान हो जाता है, वह परद्रव्यों को पर ही देखकर कभी खीझता नहीं हैं ज्ञानी सदैव यही सोचता है कि इन पर द्रव्यों की मेरे में कुछ करने की ताकत ही नहीं हैं यदि मेरी अपयश कीर्ति प्रकृति काम नहीं कर रही होती, तो दूसरे के मुख में अशुभ कहने की शक्ति ही नहीं थीं यदि मेरी यश कीर्ति उदय में न होती तो दूसरे का मुख मेरी प्रशंसा में खुल ही नहीं सकता था अतः ज्ञानी पर को कर्ता नहीं बनाता तथा पर का कर्ता भी नहीं बनतां वह तो स्वयं का कर्त्ता स्वयं ही होता है और स्वयं के फल का भोक्ता भी स्वयं होता हैं भो ज्ञानी! एक माँ के दो सुत थें ज्येष्ठ कमठ और लघु मरुभूतिं राजा अरविंद एक दिन मंत्री से सलाह कर मरुभूति के साथ विदेश यात्रा को जाते हैं बड़ा पुत्र कमठ था, परंतु उसमें ज्येष्ठत्व नहीं था, क्योंकि ज्येष्ठ से ज्येष्ठत्व नहीं आता, श्रेष्ठता से ज्येष्ठत्व आता हैं जिनवाणी कहती है- ज्येष्ठ बनने की होड़ मत लगाओ, श्रेष्ठ बनने की होड़ लगाओं जिसके अंदर श्रेष्ठता होती है उसे आप छुपा नहीं सकते; क्योंकि कौए और कोयल की पहचान वर्ण से नहीं, वाणी से होती हैं इसी तरह सज्जन व दुर्जन की पहचान रंग-रोगन से नहीं, उसकी परिणति से होती हैं अज्ञानी कमठ अपने लघु भ्राता की पत्नी को देख, कुदृष्टिपात कर अपने मित्र से कहता है कि जब तक मेरे भाई की पत्नी अरुंधती मुझे प्राप्त नहीं होगी, तब तक मेरा जीवन व्यर्थ हैं मित्र समझाता है कि लघु भ्राता पुत्र के तुल्य होता है, उसकी पत्नी तुम्हारी बेटी के तुल्य अथवा पुत्र-वधु के समान है, ऐसा मत करों महान नीतिकार आचार्य वादीभसिंह सूरि "क्षत्रचूड़ामणि ग्रंथ में लिख रहे हैं विषयासक्तचित्तानां गुणाः को वा न नश्यतिं न मानुष्यं वैदुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाकं 10 Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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