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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 262 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"हिंसक जीवों का घात भी हिंसा है"
रक्षा भवति बहूनामेकस्यैवास्य जीवहरणेनं इति मत्वा कर्त्तव्यं न हिंसनं हिंस्रसत्त्वानाम् 83
अन्वयार्थ :अस्य ="इसं एकस्य एव = एक ही जीवहरणेन = जीव घात करने में बहूनाम् = बहुत से जीवों की रक्षा भवति = रक्षा होती है" इति मत्वा =ऐसा मानकरं हिंस्रसत्त्वानाम = हिंसक जीवों का भी हिंसनं = हिंसां न कर्तव्यं = नहीं करना चाहिये
बहुसत्त्वघातिनोऽमी जीवन्त उपार्जयन्ति गुरुपापम् इत्यनुकम्पां कृत्वा न हिंसनीयाः शरीरिणो हिंसाः 84
अन्वयार्थ :बहुसत्त्वघातिनः = बहुत जीवों का घातीं अमी = ये जीवं जीवन्तः = जीते रहेंगे तों गुरुपापम् =अधिक पापं उपार्जयन्ति = उपार्जन करेंगें इति = इस प्रकार की अनुकम्पां कृत्वा = दया करकें हिंस्राः शरीरिणः = हिंसक जीवों को न हिंसनीयाः = नहीं मारना चाहिये
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावनदेशना को आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने हम सभी को प्रदान करते हुए बहुत ही सहज सूत्र दिया है कि जब अंतरंग में विशुद्धता का उद्गम होता है, तब अंदर की अग्नि शमन को प्राप्त हो जाती हैं और बाहर की अग्नि कुछ भी नहीं कर पातीं जिसके अंतरंग में भेदविज्ञान की निर्मल सरिता बह रही हो, उसका बाहर के ओले-शोले कुछ भी नहीं कर पाते और जिसका अंतरंग वासनाओं से दहक रहा हो उसके लिए बाहर से चंदन के छींटे कुछ भी नहीं कर पातें कितनी ही चंद्रमा की चांदनी हो, सुगंधित समीर बह रही हो, किन्तु कलुषिता की परिणति आपके अंदर लहरें ले रही हो तो शीतल समीर भी तुम्हें शांति प्रदान नहीं करेगीं अतः,आवश्यकता है अंतरंग की अग्नि को बुझाने
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