________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 260 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! संगीत से प्रभावित करके किसी को बुला लेना, डमरू बजाकर बुला लेना, यह तो मदारी भी कर सकते हैं बाहर की भीड़ तो मदारी भी जुटा सकते हैं, संगीत आदि किसी के माध्यम से किसी को रिझा लेना अथवा कर्ण इन्द्रिय का विषय बनाकर किसी को भी बिठाया जा सकता हैं लेकिन जिनवाणी को अन्तःकरण का विषय बनाकर जो बैठा दे, उसका नाम संत होता हैं संत के हृदय में तो मृग में भी भगवान दिखते है और असंत के हृदय में तो भगवान् में भी भगवान् नहीं दिखतें अहो! जो निर्मलता से श्रुत को सुने, उसी का नाम श्रावक हैं श्रुत-वंदना, श्रुत- आराधना के प्रभाव से वह मृग का जीव बालि मुनिराज हुआं मनीषियो! ध्यान रखना-कभी भी, कहीं भी बैठे हो, तो यह कभी नहीं सोचना कि यहाँ तो पशु खड़ा हैं अहो! उसने कुछ किया था, तो बेचारा आज पशु बना हैं तुम भगवानों और इंसानों के साथ छल करोगे तो फिर कहाँ जाओगे? पशु भी नहीं बन पाओगे, निगोदिया ही बनोगें जिनवाणी कहती है कि तुम्हारे घर में तुम्हारे कारण पशु बंधा हैं एक तो तुम उसे बांधे हो और समय पर उसे भोजन पानी भी नहीं देते हो, तो ध्यान रखो, आपको नियम से वहीं अशुभ-कर्म का आस्रव होगा, क्योंकि जिनवाणी पर्याय को नहीं देख रही है, जिनवाणी पर्यायी को देख रही हैं आपकी आत्मा और एक पशु की आत्मा (इन दोनों आत्माओं) में मात्र पर्याय का अंतर है, पर्यायी का कोई अंतर नहीं हैं
___ भो ज्ञानी! करोड़ों संकट झेल लेना, करोड़ों विपत्ति को सह लेना और एक बार तुझे कोई अज्ञानी भी कह दे तो उस घुट को भी पी लेना, लेकिन अपनी वृत्ति से जिनशासन के प्रति किसी को अनास्थावान् मत बना देनां ध्यान रखना, धर्म के क्षेत्र में आकर यदि आपने धर्म को हिंसारूप कह डाला, वह सबसे बड़ी मायाचारी हैं आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने स्पष्ट कहा है कि धर्म के नाम पर हिंसा, हिंसा ही हैं हिंसा कभी धर्म नहीं हो सकती, कषाय कभी धर्म नहीं होगी धर्म में कषाय आ जाये तो वह कषायरूप ही परिणित होगी, धर्मरूप परिणित नहीं होगी ध्यान रखना-दूध में पानी मिला दो, लेकिन वह रहेगा पानी ही आपने पुण्य के योग में धर्म में भी कषाय की है, मायाचारी की है, तो तुम्हारा पुण्य भी उतना पतला हो जायेगा, जितना पानी
से गाढा दुध पतला हो जाता हैं ऐसे ही शद्ध-पुण्य का संचय आपने किया, पर मायाचारी करने के परिणाम स्वरूप तिर्यचों में जन्म लेना पड़ेगां नारी-पर्याय में पुण्य कर देव-आयु का बंध कर लिया, फिर मायाचारी की., तो देवी बनना पड़ेगां इसलिए विवेक के साथ जीनां एक ग्वाले ने प्रभु के चरणों में समर्पित करने हेतु तालाब से पुष्प निकाला, तो कीचड़ में उसके हाथ-पैर बिगड़ चुके थे पर भक्ति के आवेश में उसी कीचड़ के साथ वह मंदिर में पहुँच गयां भगवान् की भक्ति की थी, सो उसको इतना पुण्य का आस्रव हुआ कि अगली पर्याय में सम्राट (करकण्डूक) बना, मगर कीचड़ भरे पैर-हाथ सहित भगवान् के जिनालय में प्रवेश किया था, सो हाथ-पैरों में खाज हो गईं ध्यान रखना, मंदिर में बिना पैर धोए प्रवेश मत कर जानां भक्ति तो है, पर भावों को भी तौलो, द्रव्य भी देखो, क्योंकि आस्रव भावों से ही नहीं, मन वचन काय के योग से होता
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com