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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 249 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
बंध को प्राप्त कर लेता हैं ध्यान रखो, किसी का मरण तो उस जीव के आयुकर्म के क्षय से ही होता है, लेकिन आपका बंध आपकी परिणति से ही होगां
मनीषियो! जब हम भावों से हिंसा कर सकते हैं, तो भावों से अहिंसा भी तो कर सकते हैं तीर्थंकर-प्रकृति का बंधकजीव भी शरीर से उतने जीवों की रक्षा नहीं कर पाता है, जितनी परिणामों से करता हैं अविरत-सम्यकदृष्टिजीव भी मन से सोलहकारण भावना भाकर तीर्थंकर-प्रकृति का बंध कर लेता हैं भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि जब तक तुम्हारे जीवन में तीव्र पुण्यप्रकृति काम नहीं करेगी, तब तक पुण्य करने का परिणाम भी नहीं होगा और किसी जीव की रक्षा के भाव भी नहीं आयेंगें खाली बैठा रहेगा, गुनगुनाता रहेगां यहाँ-वहाँ की कहानी-कथाओं पर दृष्टि चली जायेगी, पर इतना पुण्य ही नहीं होता कि हम धर्म का सोच पाएँ अरे! आप भोजन में, निहार में, यात्रा में, कोई काम करते समय सोचते हों जब आप घर में होते हो, ऑफिस में होते हो, तब भी सोचते हों तीर्थकर भी इतना ही तो सोचते हैं मंदिरजी आप जायेंगे तो रास्ते में कोई काम करते चले जाते हों वह समय आपके पास था या नहीं? लेकिन लोगों ने यह समझ लिया कि धर्म तभी होगा जब मंदिर में बैठेंगे, अरे! चाहे श्मशान हो, चाहे मंदिर, सभी तेरे धर्म के स्थान हैं जिनवाणी कहती है कि मुनियों के विहार के समय उनका अंदर में चैतन्य–विहार होता हैं अहिंसाधर्म के लिए निग्रंथ-योगी पैदल चलते हैं; और चैतन्य–विहार में निजधर्म के लिए चलते हैं आप लोग रुके हो इसलिए रुके हो; विहार करने लगो, तो विहार हो जायेगां रुके में राग होता है, रुके में मल होता है, अतः कीचड़ हो जाता हैं पर जो प्राणी विहार करता है, वह निर्मल होता हैं ऐसे ही चैतन्य–विहार में जो लोग होते हैं, वे निग्रंथ होते हैं अतः, धर्म के लिए स्थान की खोज नहीं करनां चिन्तन तो चलता रहता हैं अरे! गाड़ी को आगे ले जाओ, चाहे पीछे ले जाओ, डीजल/ पेट्रोल तो जलता ही हैं ऐसे ही भो ज्ञानी आत्माओ! चाहे परिणति को शुभ में ले जाओ अथवा अशुभ में, वीर्य का क्षय तो होता ही है, आयुकर्म का क्षय तो होता ही है और क्षयोपशम का व्यय तो होता ही हैं अतः, धर्म को कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं हैं दीपक के प्रकाश के लिए कौन-सा प्रकाश लाओगे? तुम्हारे ज्ञान-दर्शन की खोज करने कौन-सा ज्ञान-दर्शन लाओगें जो धर्म की खोज करे, उसने धर्म को जाना ही नहीं धर्म तो धर्म होता है, खोज तो धार्मिक की क्रियाओं की की जाती हैं मंदिर बना रहे हो, जिनालय बनाकर पूजा कर रहे हो, यह धर्म की खोज नहीं हैं यह धर्म की क्रियाओं की खोज है, जिससे हम अपने धर्म को पा सकें धर्म कहीं गया ही नहीं हैं आप ही बताओ, दुग्ध गरम है, दूध को ठंडा करने के लिए आप पंखा कर रहे हों ऊष्णता तो पर के संयोग से हैं जो विकृति आई, उस विकृति को हटाने के लिए पंखा चल रहा हैं
अहो मुमुक्षुओ! धर्म की खोज के लिए धर्म नहीं होता, अधर्म को भगाने के लिए हम धर्म की क्रियायें करते हैं जो मेरा धर्म नहीं है उसको हमने लपेट लिया हैं इसलिए आप उसको हटाने का पुरुषार्थ कर रहे हों
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