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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 248 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"परम रसायन है अहिंसा"
स्तोकैकेन्द्रियघाताद्गृहिणां सम्पन्नयोग्यविषयाणाम् शेषस्थावरमारणविरमणमपि भवति करणीयम् 77
अन्वयार्थ : सम्पन्नयोग्यविषयाणाम् = इन्द्रियों के विषयों का न्यायपूर्वक सेवन करनेवालें गृहिणाम् =श्रावकों कों स्तोकैकेन्द्रियघातात = अल्प एकेन्द्रिय घात के अतिरिक्तं शेषस्थावरमारणविरमणमपि = अवशेष स्थावर (एकेन्द्रिय) जीवों के मारने का त्याग भी करणीयम् भवति = करने योग्य होता हैं
अमृतत्वहेतुभूतं परमंमहिंसारसायनं लब्ध्वां अवलोक्य बालिशानामसमंजसमाकुलैर्न भवितव्यम् 78
अन्यवार्थ : अमृतत्वहेतुभूतं = अमृत अर्थात् मोक्ष के कारणभूतं परमं अहिंसारसायनं = उत्कृष्ट अहिंसारूपी रसायन कों लब्धवा = प्राप्त करके बालिशानाम् = अज्ञानी जीवों के असमंजसम् = असंगत बर्ताव को अवलोक्य = देखकरं आकुलैःन भवितव्यम् = व्याकुल नहीं होना चाहिये
मनीषियो! आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने परमतथ्य को प्रकट करनेवाली परम- अहिंसा का कथन किया है कि विश्व में यदि कोई धर्म, कोई चारित्र, कोई संयम है, तो मात्र अहिंसा ही हैं जितना व्याख्यान है, जितनी चर्यायें हैं, क्रियायें हैं, सब अहिंसा के लिए हैं चाहे वह लौकिकदृष्टि हो, परमार्थदृष्टि हो अथवा नैतिकता की दृष्टि हो, सभी अहिंसा की दृष्टि हैं अतः द्वादशांग का सार एकमात्र अहिंसा हैं
भो ज्ञानी! कोई जीव शरीर से हिंसा करता है, कोई वचन से, कोई बैठे-बैठे मन से ही कर लेता हैं जगत में वचन के हिंसक कम हैं, तन के हिंसक भी कम हैं, पर मन के हिंसक बहुत ज्यादा हैं, क्योंकि वचन और तन से हिंसा करेंगे तो पकड़े जायेंगे, लेकिन मन की हिंसा इतनी विचित्र होती है कि क्षण में विश्व के प्राणियों के घात के परिणाम कर लेते हैं मन द्वारा एक समय में अनंत जीवों के वध द्वारा मनुष्य पापस्वरूप
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