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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 245 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
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भो ज्ञानियो! पाषाण में अरहंतदेव को देख रहे हो तो जो उदम्बर फल हैं, इनमें कौन विराजा है ? आपको सम्मेद शिखर की मिट्टी में सिद्ध भगवान् नजर आ रहे हैं तो केंचुए की पर्याय में सिद्ध क्यों नहीं दिख रहे ? भगवान् की पूजा करने के लिए वाहन पर बैठ कर मंदिर में गया, उधर नीचे भगवान जा रहे हैं, पर उन भगवान् पर कोई ध्यान नहीं हैं पाँच मिनिट पहले चल देते, ईर्यापथ से चलतें मनीषियो ! ध्यान रखना, कम से कम जिनालय में तो पैदल आ जाया करों जिस अहिंसा की बात अमृतचंद स्वामी कर रहें हैं उसे समझों एक ओर आप पाषाण में स्थापित परमेश्वर की वंदना कर रहे हो और दूसरी ओर उस पर्याय में बैठे भावी भगवान् को तुम कुचलते चले जा रहे हों अहो! बोले- मेरे भाव मारने के थोड़े थे, भगवान् की वंदना के भाव थें अच्छी बात हैं पर एक बात और बता देना कि वध भावों मात्र से होता है कि मन-वचन-काय से होता है? यदि भावों से सबकुछ आप कर लेते हो, तो आज से भावों का भोजन करना शुरू कर देना भो ज्ञानी ! विवेक लगाओ, हमारे पास दो बगीचे हैं एक देह है, एक देही है! पर पानी बहुत कम हैं। यदि मैं आत्म-उद्यान में जल देता हूँ तो देह का उद्यान सूखता है और देह के उद्यान में नीर देता हूँ तो देही का उद्यान सूखता हैं मनीषियो ! यहाँ यह देख लो कि तुम्हारी दृष्टि में कीमत किसकी है? आयुकर्म का नीर अल्प हैं देही में दोगे तो परमेश्वर बन जाओगे और देह में दोगे तो नरकेश्वर बन जाओगें अब जो आप की इच्छा हो, वह कर लेना आचार्य भगवान् उमा स्वामी कह रहे हैं, भाव सुधार लेते तो तेरी भवितव्यता निर्मल हो जाती मुमुक्षु भाव व भव की बात बाद में करता है, पहले भावनाएँ सुधारता है तुम्हारी भावनायें निर्मल हैं, इस बात को तुम कैसे प्रमाणित कर सकते हो ? भोजन होटल में चल रहा है, रात्रि में भोजन चल रहा है, रात्री में काजू किशमिश चल रहा है, फिर भी कहता है कि भाव निर्मल हैं और भावनायें निर्मल हैं
अहो! परमात्मा बनता कैसे है ? भावों से बनता है कि भावनाओं से? चाहे दर्शन की बात करो, चाहे ज्ञान की बात करो, चाहे कोरे संयम की करो, लेकिन जब तक तीनों की एकता नहीं हो रही है तब तक मोक्षमार्ग संभव नहीं हैं आचार्य अमृतचंद स्वामी ने बहुत विवेक के साथ लिखा है ता कि ये मुमुक्षु बेचारे भटक ना जायें शुद्धि की बातें करते-करते वह आचार को अशुद्ध करके बैठ गयें कभी कल्याण नहीं होगां ध्यान रखना, भारतीय संस्कृति में विचारों की पूजा बिल्कुल नहीं की गयी हैं विचार पूज्य नहीं हैं, पर आचार से समन्धित विचार हैं, तो पूज्य हैं
भो ज्ञानी! गौतम स्वामी को सामान्य जीव मत समझ लेनां वे बहुत बड़े विचारक थे, उनके पाँच-सी-शिष्य थे, परंतु आचारक नहीं थे और जब तक आचारक नहीं थे तब तक किसी जैन ने नमस्कार नहीं कियां जिस दिन वही विचार आचार में ढल गये तो आज भगवान् महावीर स्वामी के बाद "मंगलम् भगवान् वीरो, मंगलम् गौतमोगणी" गौतम स्वामी को दूसरे स्थान पर रखा है, क्योंकि आचार से समन्वित हो गये तो उनके विचार भी वन्दनीय हो गयें अहो! आचार व विचार हीन व्यक्ति का ज्ञान, ज्ञान नहीं है तथा
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