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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 223 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
बता रहे थे-उन्होंने भावनगर (गुजरात) में चातुर्मास कियां वहाँ एक सेठजी कहने लगे कि उनकी नमक की क्यारियों में एक मजदूर का सोलह वर्ष का बालक गिर गया और किसी ने नहीं देखां पंद्रह दिन बाद जब क्यारी खोदी गयी, नमक निकाला गया, उसमें चार-पाँच स्थूल हड़ियाँ मिलीं, तब पता चला कि बेटा तो यहाँ गल चुका हैं ऐसे ही उसमें छोटी-छोटी मछलियों व कीड़ों का शरीर गल जाता हैं अरे! खाना है तो, पत्थर का नमक खाया करों वह भी बिल्कुल चिकना हो तो मत लेना, जो खुरदुरा हो वही लेनां ऐसा नमक मत खाना, जिसमें पंचेंद्रिय जीवों की हड्डी-मांस मिले हों
मनीषियो! आचार्य भगवान् कह रहे हैं प्राणी के विधात किए बिना कहीं भी माँस की उत्पत्ति नहीं देखी जाती यह कोई फल, फूल, मेवा नहीं है, जीवों का पिण्ड हैं जिन औषधियों में जैविक द्रव्य पड़ा हुआ है, चाहे वह गोलियाँ हों, केपसूल हों, अहो! मरना हो तो मर जाना, लेकिन जीवन के लोभ में आकर हम जीवों का कलेवर क्यों खाएँ ? कुछ अज्ञानियों के तर्क आचार्य अमृतचंद स्वामी के सामने भी थे, जो कहते थे कि हम कौन मार रहे हैं? हम तो मरे-मराए को ही खा रहे हैं परंतु यह भी हिंसा ही है
कारकल, कर्नाटक स्थित गोम्मट मंदिर
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