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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 207 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि यह नयचक्र बहुत गहन हैं बिना गुरु के विद्या की प्राप्ति संभव नहीं है, गुरु तो चुनना ही पड़ेगा भो चेतन! लोक में पंच-परम-गुरु ही शरण हैं और जिस जीव की पंच परम गुरु की शरण हट गयी, उसका मोक्षमार्ग अवरुद्ध हो गयां जब तक इनके प्रति आस्था है, तबतक धर्म का आनंद हैं आचार्य समंतभद्र स्वामी लिख रहे हैं कि "मातृवत बालस्य हितानुशास्ता" जैसे एक माँ अपने बालक का हित चाहती है, वैसे ही प्रभु विश्व के सभी प्राणियों का हित चाहते हैं हे प्रभु! आप ऐसी माँ हो, जो कि बिना किसी अपेक्षा के सबकुछ कर रहे हों ऐसे पंच-परम-गुरुओं की शरण को जिसने प्राप्त कर लिया, उसे संसार में कहीं भी भय नहीं लगतां एक मृगी का बालक अपनी माँ की गोद में किलकारियाँ भरता है और उसे सिंह का डर भी नहीं लगतां आचार्य मानतुंग स्वामी 'भक्तामर स्तोत्र' में लिख रहे हैं-हे मुनीश! हे गुरुदेव! हमारे गुरु निग्रंथ हैं और परमगुरु अरिहंत हैं, तीसरा मेरा कोई गुरु नहीं हैं मनीषियो! ध्यान रखना, जो निग्रंथ नहीं; है वे हमारे गुरु नहीं हैं आचार्य महाराज 'भक्तामर स्तोत्र' में लिख रहे हैं-"सोऽहँ तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश", हे मुनीश! आपकी भक्ति के वश होकर, 'कर्तुस्तवं' मैं आपका स्तवन कर रहा हूँ लेकिन प्रभु मैं जानता हूँ कि मेरे अंदर सामर्थ्य नहीं हैं आप महान गुणों के अगाध सागर हो, मैं स्तवन कर भी कैसे सकता हूँ? हे प्रभु! "निज शिशोः परिपालनार्थम्" अपने शिशु के पालन करने के लिये जैसे मृगी मृगेंद्र को देखकर भयभीत नहीं होती और बालक के वात्सल्य में आकर सिंह से भी लड़ने को तैयार हो जाती है, उसी प्रकार, अहो निग्रंथों के भक्तो! प्रभु के चरणों में प्रार्थना कर लेना कि, हे नाथ! जब तक मेरे कण्ठ में श्वासें चल रहीं हैं, तब तक श्रद्धाओं और मिथ्यात्व के सिंहों से मैं घबराऊँ नहीं कितने ही अश्रद्धा के शेर मुख फाड़े बैठे हों, कितने ही पंच-परमगुरु से दूर भगानेवाले आ जायें, लेकिन, हे नाथ! हम फिर भी आपके चरणों के सामने खड़े हो जायेंगें अहो! संसार में कोई शरण है तो एकमात्र पंच-परम-गुरु हैं, और दूसरी शरण कोई नहीं हैं भो ज्ञानी! आचार्य महाराज कह रहे हैं कि अभी तक तो आपको गुरु की शरण को प्राप्त कराया है, ब आप भगवान जिनेंद्र के नयचक्र को समझों यह नयचक्र ऊपर नहीं चलता और न ऊपर दिखता है, वह तो अंदर के सिर को फोड़ता हैं जो तुम्हारे अंदर मिथ्यात्व का पुतला बैठा है, एकान्त का पुतला बैठा है, उस एकांत के पुतले में छेद करता हैं नयचक्र किसी के सिर को फोड़ता नहीं है; क्योंकि यह अहिंसाधर्म है और हम अहिंसा की बात कर रहे हैं, अन्यथा आप कहो कि आचार्य महाराज ने इतना कठोर शब्द क्यों लिख दिया? किसी का सिर नहीं फोड़ रहे हैं यह ध्यान रखना, शब्द बड़ा पैना हैं पंच- कल्याणक महोत्सव में एक पाषाण को हमने चार दिन में परमेश्वर बना दिया और हमारे देखते-देखते केवली बन गये और केवली बनानेवाला जैसा का तैसा बैठा हैं एक प्रतिष्ठाचार्य ने एक पर्याय में कितने भगवान बना डाले, लेकिन निज के भगवान् को नहीं बना पायां अहो! वह पाषाण श्रेष्ठ है, जो कुछ ही दिन में परमेश्वर बन गया, पर अपना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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