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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 199 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 बैठा है, लेकिन रक्त की इतनी धाराएँ बह रहीं हैं इन सब का दोष उसको तो लगना ही लगना हैं किसी को हिंसा उदय-काल में एक ही हिंसा के फल को देती है और कोई एक जीव को हिंसा होने पर हिंसा का फल मिल रहा है और एक जीव से हिंसा होने पर भी अहिंसा का फल मिल रहा हैं भटक नहीं जाना जैसे आपको कोई जीव आँखें दिखाने आया, सो आपने उसकी आँखों में ड्राप डाल दिया लेकिन वह रियेक्शन कर गया, उसकी आँखें फूट गईं, परंतु पुलिस आपको नहीं पकड़ेगी, क्योंकि आपका उद्देश्य उसकी आँखें फोड़ना नहीं था, उसको ठीक करना थां इस प्रकार शल्यक्रिया करते समय डॉक्टर के यहाँ किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है, फिर भी वहाँ बचाने का ही उद्देश्य था, अतः उसको अहिंसा का फल ही मिलेगां अहो! एक जीव यह सोच कर चला था कि हम स्वयं मारेंगे तो लोग हमें पकड़ लेंगें सो ऐसा कर लो, भैया! तुम लो पचास हजार, हमारा पता नहीं चलना चाहिएं अहो! उनको पता नहीं चल पाए और तुमने जहर खिलवाकर उसको खत्म करा दियां भो ज्ञानी! हिंसा तो आपने नहीं की, पर ध्यान रखना, तुम अहिंसक नहीं हो और चिंता नहीं करों बुन्देलखण्ड के लोग एक बहुत अच्छी कहावत कहते हैं- "जब पाप उदय में आता है तो मगरे पर चिल्लाता हैं" अरे! इतने गहरे-गहरे एकांत में किये गये पाप पेपर में कैसे छप गये? सब पता चल जाता हैं इसलिए, जीवन में ध्यान रखना, किसी को प्रेरित मत करना, किसी की प्रेरणा में संयोगी मत बननां ध्यान रखना, बहेलियों का काम भी नहीं करना उसका काम झाड़ी में छुपकर मारना है अर्थात् दूसरे के द्वारा दूसरे का घात करा दिया, बोले- मैं तो धर्मात्मा हूँ और ज्यादा हुआ तो चलो हम श्रीजी का अभिषेक कर लेते हैं, पवित्र हो जायेंगें ऊपर की क्रिया पवित्र नहीं कराती, परिणति पवित्र कराती हैं परिणति के साथ क्रिया है, तो पवित्र हो जाओगें GAAN सिंह (सोलह सपने) Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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