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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 188 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 स्वामी उतने ही का हो पाएगा जितना तेरे पास पुण्य हैं तेरे मन में भाई को मारने का भाव आ गया, पर उसकी मृत्यु नहीं हुई क्योकि उसका भाग्य था, तो सिद्धान्ततः आप भाई के हत्यारे तो हो चुके हों अरे! लोक में जो दण्ड दिया जाता है वह दण्ड–व्यवस्था मात्र शरीर के पाप/अपराध की है, लेकिन माँ जिनवाणी कहती है कि मेरी दण्ड-व्यवस्था पाप मात्र की नहीं, मेरी दण्ड-व्यवस्था पाप के परिणामों तक की हैं पर वीतरागी-शासन का कानून भी अंधा नहीं है, वहाँ केवलज्ञान के नेत्रों से देखा जाता हैं सबको उसका दण्ड-कर्म-के बंध से दिलाया जाएगा, तुम छिपकर नहीं जा सकते हों अतः, तुम भावों में भी हिंसा नहीं करना
__ भो ज्ञानी! एक जीव ईर्यापथ से विवेकपूर्वक जा रहा था कि किसी जीव का घात न हो जाए और एक जीव अचानक पैर-तले आकर मृत्यु को प्राप्त हो गया, फिर भी बंध नहीं, क्योंकि उसके वध करने के परिणाम नहीं थें कभी-कभी पानी में चींटी चली जाती हैं आप धीरे से उठाते हो और उठाते-उठाते मर जाती है, दिखने में हिंसा हुई है, पर वह हिंसा नहीं, क्योंकि उसके रक्षा के भाव थे इसलिए हिंसा का पाप नहीं लगेगां एक जीव छोटी-सी हिंसा करता है,पर बहुत बड़ा फल मिलता है, जैसे कि भाव तो तुम्हारे यह थे कि अब तो पूरा नष्ट करके आएँगे और वो गोली उसके पुण्य से दीवार से टकरा गयीं मारनेवाले को तो हिंसा का दोष पूरा ही लगा हैं यह नियम हर क्षेत्र में लगाना एक माँ गर्भपात की औषधि खा रही है, परन्तु गर्भस्थ संतान के पुण्य के योग से उसकी मृत्यु नहीं हो रही है, लेकिन आप यह नहीं सोचना कि मैं हिंसा से बच गयीं आप तो हिंसा कर ही चुके हो, उसका पुण्य था जो वह बच गयां यदि कभी पंचेन्द्रिय मनुष्य का घात डाक्टर द्वारा शल्य-क्रिया करते-करते हो गया, हिंसा तो हुई है, पर उसके मारने के भाव नहीं थे दोष तो लगा पर अल्प लगेगां इसलिए, अब सँभल के सुनना तथा संभल- संभलकर चलनां
युगल मीन (सोलह सपने)
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