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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 183 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
अरे! निश्चय व व्यवहार दोनों के माध्यम से ही मोक्ष हैं इसीलिए विवेक लगाकर चलनां पक्षों में धर्म नहीं, पंथों में धर्म नहीं, धर्म आत्मा का गुण हैं जिसने इसे समझ लिया, उसे कुछ भी समझने की आवश्यकता नहीं जब तक विषयातीत नहीं हो रहा, तब तक नयातीत होनेवाला नहीं हैं
भो ज्ञानी आत्माओ! आत्मा सूक्ष्म-हिंसक भी नहीं हैं कथंचित् निश्चय से आत्मा त्रैकालिक ध्रुव शुद्ध हैं इसीलिए हिंसक-भाव शुद्ध आत्मा की अवस्था नहीं है, अशुद्ध आत्मा की दशा हैं लेकिन परिग्रह के संयोग से हिंसा होती हैं इसीलिए जो हिंसा के आयतन हैं उनको छोड़ दोगे तो हिंसा छूट जायेगी हिंसा के आयतनों से निवृत्ति करके परिग्रह आदि का त्याग करना उचित है परिणामों की विशुद्धि के लिए परिग्रह रहे और परिणाम विशुद्ध हो जायें-यह त्रैकालिक संभव नहीं हैं
भो ज्ञानी! आप अध्यात्म को खूब समझो, लेकिन अध्यात्म समझना भिन्न है और अध्यात्म को चखना भिन्न हैं अध्यात्म की भाषा भिन्न है और अध्यात्म भाव भिन्न हैं भो ज्ञानी! भाषा में अध्यात्म का आनन्द लूट रहे हो? अरे! जिसकी भाषा इतनी निर्मल है, उसके भाव कितने निर्मल होंगे? भो चैतन्य! वाह्य आचरण का नाश कर रहा है, भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक नहीं, हेय-उपादेय का विवेक नहीं, रात्रि में पानी पी रहा, भोजन कर रहा है, और कहता है कि पुद्गल का परिणमन पुद्गल में चल रहा है, कितनी बड़ी विडम्बना है? यह तो मिथ्यात्व हैं 'पुद्गल का परिणमन' कहना तब सत्य है, जब तेरे सिर के ऊपर कोई सिगड़ी रख दें फिर स्वभाव में चले जाना, वहाँ कहना कि मेरा कुछ नहीं है, यह पुद्गल का परिणमन पुद्गल में हैं इसीलिए, भो ज्ञानी! स्वरूप की दृष्टि को भोगों में मत लगानां इतना ध्यान रखना कि जो भूल रहा है, वह भी अपना ही बंधु है, वह भी भटकता भगवान् हैं उससे भी द्वेष मत करना
भगवान कुंथुनाथ, मुनिगिरी तीर्थ, कांचीपुरम से १५ कि.मीटर कारिन्दे गांव तमिलनाइ
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