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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 177 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
आपका हाथ तो जल ही जायेगां ऐसे ही जिसके प्रति आप कषायभाव रख रहे हो, उस जीव का घात-अपघात उसके पाप-पुण्य पर निर्भर है, लेकिन तुम्हारा घात तो निश्चित हैं हे कंस ! आपने नारायण कृष्ण को मारने के लिए पूतना देवी भेजी, लेकिन वह पलायन कर गई और आप से ही बोली कि आपका पुण्य क्षीण हो चुकां इसीलिए कषाय-परिणाम जब-जब होते हैं, तब-तब स्वयं का घात होता है और जो कषाय करता है, वही सबसे बड़ा कषायी होता है, क्योंकि कषायी पर-का प्राणघात करता है, परन्तु आत्म-कषायी स्वयं के ही प्राण का घात करता हैं इस कारिका में आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि आप चाहे हिंसा करो या न करो, पाप करो या न करो, लेकिन जब तक तुमने बुद्धिपूर्वक त्याग नहीं किया, तब तक आपकी हिंसा का त्याग भी नहीं हैं।
भो ज्ञानी! एक घटना आपको बतायें एक मार्ग में मुनिराज और एक देशव्रती श्रावक जा रहे थे रास्ते में घास आ गई मुनिराज पीछे हट गयें श्रावक के मन में भाव आ गये कि हम कौन महाव्रती हैं धीरे से निकल गयां बस, देख लो व्रत का परिणाम देशव्रत के नाते संयम तो नहीं गया, लेकिन यह बताओ संयम का अभाव हुआ कि नहीं ? इसलिए उसका नाम व्रताव्रत/संयम-असंयम है, क्योंकि देशव्रती त्रस-हिंसा का त्यागी होता है, स्थावर-हिंसा का त्यागी नहीं होतां परन्तु यह नहीं सोच ले कि मेरा त्याग नहीं है, तो उसका बंध नहीं होगां बंध तो उसको होगा ही, लेकिन तुम्हारे व्रत में दोष नहीं है, क्योंकि तुम्हारा इतना ही व्रत थां लेकिन बंध छूट जायें, ऐसा नहीं कहनां महाराज जी! मैं आलू नहीं खाता हूँ , प्याज भी नहीं खाता हूँ , लेकिन मैं नियम से नहीं बंधना चाहतां पूछा, क्यों? तो बोले- कभी आवश्यकता पड़े तो बस यही तो असंयम हैं बेचारा खा नहीं रहा जीवनभर, परंतु आस्रव चला जीवन भरां क्यों चला ? अंदर में कषाय बैठी थी कि कभी आवश्कता पड जायेगी यदि कोई नियम ले लें कि मेरा उनतीस दिन ब्रह्मचर्य व्रत हैं उसका उनतीस दिन तक का व्रत तो है, पर ध्यान रखना, आपके उन दिनों में भी शंका चल रही है, तुम्हारे अन्दर कमजोरी बैठी हुई हैं हिंसा में व्यक्ति का परिणमन नहीं है, पर वह हिंसा के परिणाम भी हिंसा ही हैं जिसके प्रमाद है, नित्य ही उसकी हिंसा हैं किसी जीव ने असंयम का सेवन नहीं किया, परंतु असंयम सेवन का भी त्याग नहीं किया, इसलिए उसके नियम से हिंसा का दोष लग रहा है, जैसे कि आप रात्रि भोजन नहीं करते हो, परन्तु त्याग नहीं हैं अब क्या होगा? दो व्यक्ति गये मेहमानी परं एक रात्रिभोजन का त्यागी था और दूसरा रात्रिभोजन करता नहीं थां दोनों के सामने रात्रि हो गईं दोनों के सामने बढ़िया दुग्ध का गिलास आ गया और कहा कि आपका रात्रिभोजन त्याग है? हाँ अब देखना दोनों के परिणामों कों पहला तो यह सोचता है कि इन्हें त्याग बघारना है और हम बीच में फँस जायेंगें कहाँ से कहाँ फँस गयें अब ये तो लेंगे नहीं, अपन को बीच में छोड़ना पड़ेगां जिसका त्याग था, वो कहता है-देखो भइया! मैं रात्रि में पानी भी नहीं पीता हूँ कितनी दबंगता से आवाज निकल रही थीं अब दूसरा क्या सोचता है कि त्याग तो अपना है नहीं और भोजन हो नहीं
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