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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 175 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 लेनां लेकिन जीव ऐसा प्रमादी है कि अनंत भव की यात्रायें निकल गई लेकिन आज तक इसने रत्नत्रय के पाथेय को खोलकर ही नहीं देखां आचार्य पूज्यपाद स्वामी, उमास्वामी, अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि प्रमाद ही हिंसा हैं ध्यान से समझना, कुछ लोगों को तो मनुष्य-पर्याय तक का ज्ञान नहीं, कि मैं मनुष्य हूँ कि तिर्यंच हूँ, क्योंकि बेचारे दिन-भर कमाते हैं और शाम को आकर सो जाते हैं मालूम ही नहीं है कि मनुष्य-पर्याय में और क्या होता हैं अहो! आप इसलिए महान नहीं हो कि भोजन कर लेते हो, संतान को जन्म दे देते हो, सो जाते हो और परिग्रह का संचय कर लेते हों हे मानव! तू इसलिए महान है कि तुझमें महाव्रत को धारण करने की क्षमता हैं आहार, मैथुन, परिग्रह और भय यह चार संज्ञायें संसार के प्रत्येक जीव में (एक इन्द्रिय जीव में भी ) होती हैं आपके पास एकमात्र रत्नत्रय-धर्म विशेष हैं यदि उसे भी स्वीकार नहीं कर पा रहे, तो ध्यान रखना, आप खेत में सुरक्षा करने वाले उस मनुष्य के पुतले के तुल्य ही हो जिसे आप बिजूका कहते हों भो ज्ञानी आत्माओ! रत्नत्रयधर्म की प्राप्ति के लिए पूर्व में आपने कितने पुरुषार्थ किये होंगे? कषाय की मंदता, भावों की ऋजुता, मार्दव परिणाम कर लिये थे, सो मनुष्य बन गयें भो ज्ञानी ! अब क्यों भूल रहे हो ? बनिया के बेटे हो, जितना लाये थे उतना तो लेकर जानां कहीं तुम मनुष्य से मनुष्य भी नहीं बन पाये, तो ध्यान रखना, आप अपनी ही जाति को बदनाम कर दोगें उमा स्वामी महाराज ने कहा है कि जिसके स्वभाव में मार्दवपना है, वह मनुष्य है और यदि स्वभाव मार्दव नहीं है, तो यह चर्म मनुष्य की अवश्य है, पर धर्म मनुष्य का नहीं ईर्ष्या, ग्लानि के भाव यदि आ रहे तो मनुष्य नहीं है, क्योंकि दूसरों को गिराने के, दूसरे को पटकने के, दूसरे को मारने के भाव नर में नहीं, नारकियों में होते हैं इसलिए ध्यान रखना, नर बन जाना कठिन नहीं हैं, पर नर बनकर रहना बहत कठिन हैं आप नर बन गये हो, नारकी बनने के लिए नहीं, नरोत्तम बनने के लिए बने हो; अरिहंतआत्मा ही नरोत्तम हैं, वे नर से ही बने हैं और आप भी नरोत्तम तभी बनोगे, जब प्रमाद छूट जायेगां भो ज्ञानी! जिस जीव की होनहार न्यून होती है, उसकी सोच भी भिन्न होती हैं जिस जीव के अशुभ दिन आना होते हैं, उस जीव के विचारों में ही हीनता नहीं, आचरण में भी हीनता प्रारम्भ हो जाती है और उसके भोजन में भी हीनता आने लगती हैं 'कुंदकुंद स्वामी ने 'समयसार जी के सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार में लिखा है ण मुयदि पयडिमभव्वो सुठुवि अज्झाइदूण सत्थाणिं गुड्दुद्धपि पिबंता, ण पण्णया णिव्विसा होंति 340 Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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