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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 172 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
आचरण करता है, उनको कभी भी हिंसा नहीं होतीं यदि कदाचित् किसी जीव का विघात भी हो जाये, तो भी बंधक नहीं, अबंधक है, क्योंकि बंध करने के भाव नहीं हैं एक यति ईर्यापथ से गमन करते जा रहे हैं और कोई जीव शीघ्रता से पैर के नीचे आकर घात को प्राप्त हो जाए, फिर भी वे बंधक नहीं हैं अहो! यदि 'प्रमत्त' शब्द नहीं जोड़ेंगे, तो अहिंसा महाव्रत नाम की कोई वस्तु नहीं होगी अब समझना, मुनिराज आहार कर रहे हैं, बोल रहे हैं, प्रवचन कर रहे हैं, तो हिंसा होगी या नहीं ? श्वास ले रहे हैं, हिंसा तो होगी, पर यहाँ जीव-वध करने के परिणाम नहीं हैं, किसी को कष्ट देने के भाव नहीं हैं इसी प्रकार, शल्यक्रिया करते-करते चिकित्सक के हाथ से मरीज की मृत्यु हो जाए, फिर भी वह हिंसक नहीं हैं कोई व्यक्ति किसी के हाथ पर ब्लेड मार दे, तो आप दौड़कर थाने में पहुँचोगें जबकि डाक्टर पूरा पेट काट रहा है, फिर भी आप दौड़कर नहीं जाते हों क्यों ? तत्त्व को समझनां वहाँ उस डाक्टर के उस जीव की रक्षा करने के भाव थे, पर रक्षा करने पर भी रक्षा नहीं कर सकां फिर भी वह बंधक नहीं है, अबन्धक हैं।
अहो ज्ञानी! इसमें छल ग्रहण मत कर लेना कि जानकर मार दिया, बोले-हमारे भाव नहीं थें अनर्थ हो जायेगां इसलिए आगम को आगम-दृष्टि से समझना, लेकिन प्रमाद-अवस्था में, रागादि के वश होकर प्रवृति करते हो तो जीव मरे अथवा न मरे, उसके आगे-आगे हिंसा निश्चित दौड़ रही हैं मार्ग में सिर उठाये चले जा रहे हैं, नीचे नहीं देख रहे भो ज्ञानी! जीव बचे तो अपने पुण्य से बचे, पर तुम्हारी दृष्टि से नहीं बचें एक व्यक्ति ने बाण छोड़ा, परंतु लक्ष्य पर नहीं लगा, वह बच गया अपने पुण्य के योग से; लेकिन तुम्हारी परिणति से नहीं; तुम्हारी परिणति तो मारने की थीं कर्म-सिद्धांत कहता है कि आप जिस दृष्टि से भरकर आये हो, उसी दृष्टि से बंध चुके हों भो ज्ञानी! आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने "प्रवचन सार" में कहा है
मरदु व जियदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा पयदस्स णत्थि बंधो हिंसामेत्तेण समिदस्स 217
अयत्नाचार है, तो नियम से हिंसा हैं एक माँ ने उदर में शिशु हत्या के लिए गोली खा ली, परंतु बेटा नहीं मरा, गर्भ वृद्धि को प्राप्त हुआ और पुत्र ने जन्म ले लियां होनहार थी कि बेटा हुआ, पर माता तो बेटे की हत्यारी है, हिंसक है; आपने संतान का घात तो कियां हे माताओ! आपने पूर्व में मायाचारी की है, सो तुम्हारी यह अवस्था दिख रही है, कम-से-कम अब तो ऐसा मत करों इस नारी पर्याय का उच्छेद कर दों वे पिता भी अपने आप को पवित्र पिता न समझ लें यदि गोली खाने को बाध्य किया है तो आप नारी से भी अधिक पतित
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