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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 118 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! आप उपगूहन की चर्चा कर रहे हो, आगे स्थितिकरण-अंग भी आयेगा कि, किसी से दोष क्यों हो जाता हैं दोषी का दोष पहले मत देखो, दोष के कारण को देखों अतः अपनी सोच इतनी निर्मल बनाओ कि दोषी ने तो दोष कर लिया है, यदि हम उसे न समझें और प्रचारित कर दें, तो हमने दोष पर और दोष कर दियां अहो! जिसने दोष किया था, उसके पास अभी मौका था, वह सम्हल सकता थां पर यदि दोषी को सम्हलने से पहले प्रचारित कर दिया, तो उसको आपने और निडर कर दियां हे जीव! तू स्वार्थवश तो धर्मात्मा बन सकता है, परंतु धर्म स्वार्थ का नहीं हैं उपगृहन वह ही कर सकता है जिसने धर्म देखा हैं वह तड़पता है कि कहीं यह बात प्रकट हो गयी, तो मेरे धर्म की हँसी होगी और जिसके अंदर धर्म नहीं होता, वह सोचता है कि मैं सही तो कह रहा हूँ, आप लोग क्या समझो ? भो ज्ञानी! एक छोटे बालक ने कहा-महाराज! वीतरागमार्ग ही सच्चा मार्ग हैं एक युवा ने कहा - महाराजश्री! वीतरागमार्ग ही सच्चा मार्ग हैं एक साधु ने कहा-वीतरागमार्ग ही सच्चा मार्ग हैं इसमें असत्य कोई भी नहीं कह रहा है, पर तुम बालक की पर्याय को देखोगे तो सत्य को खो दोगें वृद्ध की, युवा की और साधु की पर्याय को देखोगे तो सत्य को खो दोगे ? वहाँ तुम यह देखो कि जिनवचन हैं या नहीं यदि जिनवचन हैं, तो बालक के वचन भी उतने ही प्रमाणित हैं, जितने साधु के वचनं यदि जिनवचन नहीं हैं, तो साधु के वचन भी अप्रमाणित हैं, क्योंकि हमारे आगम में लिखा है कि वचन की परीक्षा करों वचन की परीक्षा आप कैसे करेंगे? तो प्रवचन से मिलान करों प्रवचन यानि जो प्रकष्ट वचन हैं, वही जिनदेव के वचन हैं उसी का नाम प्रवचन हैं यदि जिनदेव के वचनों से इनके वचन प्रमाणित होते हैं, तो ये भी प्रवचन हैं यदि आपके पुत्र से कोई भूल होती है, तो समझदार पिता अपने पुत्र को एकांत में ले जाकर समझा देंगें यह नहीं कहते कि मेरे बेटे ने ऐसा कर डालां भो ज्ञानी! आचार्य-परमेष्ठी के चरणों में जिस शिष्य ने अपना सारा जीवन समर्पित किया है, वे आचार्य परमेष्ठी शिष्यों के सम्पूर्ण दोषों को भी पी जाते हैं यदि उन्होंने गलती का व्याख्यान दूसरे शिष्यों से करना प्रारंभ कर दिया, तो कल आप नहीं बचोगे, आपका संघ नहीं बचेगा, धर्म नहीं बचेगा; क्योंकि प्रत्येक जीव के अंदर एक कषाय बैठी है, जिसका नाम अहंकार हैं अरे! जिसने आपको जीवन सौंप दिया, अपनी भूल को तुम्हारे चरणों में निवेदित किया, आपने दूसरे से कह दियां यदि उसका अहंकार भड़क गया तो तुम्हारे संघ पर उपसर्ग कर देगा, संयम छोड़ देगां मालूम चला कि आपकी अल्प भूल का परिणाम सारी श्रमण-संस्कृति को भोगना पड़ रहा हैं ___भो चेतन! जो भी कदम बढ़ाओ, जो भी मुख से बोलो, इसके पहले ध्यान रख लेना कि मेरे बोलने का परिणाम भविष्य में क्या हो सकता हैं आप बोल कर चले जाओगे, परंतु भविष्य आपको माफ नहीं कर सकेगां कर्म छूट जायेंगे, आप परमेश्वर बन जाओगे, परंतु, हे वर्द्धमान! आपने मारीचि की पर्याय में जो बोला था, उसे Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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