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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 107 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
“पज्जय-मूढ़ापरसमया"
लोके शास्त्राभासे समयाभासे च देवताभासें नित्यमपि तत्वरुचिना कर्त्तव्यममूढदृष्टित्वं 26
अन्वयार्थ :
लोके = लोक में शास्त्राभासे = शास्त्राभास में समयाभासे में तत्वरुचिना = तत्वों में रुचि रखने वाले सम्यकदृष्टि पुरुष कों अमूढदृष्टित्वम् अर्थात् श्रद्वानं कर्त्तव्यम् = करना चाहियें
=
धर्माभास में च = औरं देवताभासे = देवताभास
मूर्खता रहित दृष्टित्व
=
मनीषियो! वर्धमान स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्यभगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने संकेत दिया है कि, भो ज्ञानी ! संसार का प्रत्येक द्रव्य अपने स्वभाव में लीन हैं पुद्गल कभी भी किसी दूसरे के भाव को प्राप्त नहीं होता, कभी किसी से ग्लानि नहीं करता, किसी को हेय नहीं देखता है; परन्तु जीव- द्रव्य ऐसा है कि द्रव्य को देखकर के नाक सिकोड़ लेता हैं जब भोजन की बेला होती है तो उसे राग - बुद्धि से देखता है और जब उसी का परिणमन मलरूप हो जाता है तो द्वेषबुद्धि से देखने लगता है, जबकि द्रव्य जड़ था, न द्वेष करने योग्य था, न राग करने योग्य थां इस राग-द्वेष से बन्ध उस पुद्गल -पिंड को नहीं, आत्मद्रव्य को हुआ हैं जबकि द्रव्य कहता है कि मैं तो अपने आप में तटस्थ हूँ तूने मेरा उपभोग किया, फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा व मेरा परिणमन मल के रूप में हो गया, फिर भी मैंने कुछ नहीं कहा; परन्तु खेद है कि तू मुझे देखकर बन्ध को प्राप्त हो रहा हैं
भो ज्ञानी! जिनबिम्ब कुछ भी नहीं देता है, पर एक ज्ञानी जीव जिनबिम्ब को देखकरे अनंत कर्मों की निर्जरा करता जा रहा है और अज्ञानी बन्ध को प्राप्त हो रहा हैं अहो ! बन्ध तेरी दृष्टि में था, निर्बन्ध भी तेरी दृष्टि में थां भो ज्ञानी! देखना दृष्टि को एक जीव को वृक्ष में फूल दिखते हैं, किसी जीव को वृक्ष में ईंधन दिखता हैं एक निर्ग्रथ योगी को देखकर किसी को रत्नत्रय का ध्यान आ रहा है, किसी को गुरु नजर आ रहे हैं, किसी को प्रभु नजर आ रहे हैं किंतु मिथ्यादृष्टि जीव को गुरु में पाखण्ड दिखता हैं पाखण्ड यानि ढोंगं छल पर जिसकी दृष्टि हो, उसे संत में पाखण्ड ही पाखण्ड दिखेगा, उसे रत्नत्रय धर्म नहीं दिखेगां एक तो वह निर्ग्रथ के शरीर को ही देखता है, शरीर को देखने से तुझे चर्म ही दिखेगां कोई ठिगने दिखेंगे, कोई बड़े दिखेंगे, कोई सांवले दिखेंगे, कोई गोरे दिखेंगें परन्तु भगवान देवसेन स्वामी, योगीन्दुदेव स्वामी, पूज्यपाद
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