________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 1 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
गुरु के चरणों में विनायांजली
श्री
साधर्मी पाठकगण,
जय जिनेन्द्र.
आज के इस भौतिकतावादी युग में प्रत्येक प्राणी मन की शांति एवं सुख की कामना कर रहा है. परन्तु अफ़सोस ! अपने कार्य एवं क्रिया कलापों के कारण अज्ञानतावश शांति से दूर और दूर होता जा रहा हैं. प्रसन्नता, खुशी और सुख अलग अलग है. इस को आप पाठकगण, ग्रन्थ के पाठन के पश्चात भलीभांति समझ जायेंगे. ऐसे कठिन समय में आचार्य अमृतचंद्र स्वामी के ग्रन्थ की प्रत्येक मानव को अत्यंत आवश्यकता है. यहाँ पर यह बताना भी बहुत आवश्यक है कि यह ग्रन्थ सिर्फ जैन संप्रदाय के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए है. जैन धर्म, धर्म ही नहीं है बल्कि यह तो जीवन जीने की कला सिखलाता है. हम सभी असीम सुख को पाना चाहते है. शास्त्रों में कई जगह वर्णन भी आया है कि स्वर्ग के सुख और नरक के दुःखों के बीच न रहकर, असीम सुख को प्राप्त करने के लिए यह मानव योनी ही हमें श्रावक और उसके पश्चात निर्ग्रन्थ अवस्था ही मोक्ष दिला सकती है. जैसे जैसे आप इस देशना को पढते जायेंगे आप अपने
आप के स्वरुप को भी पहचानने लगेगें फिर आप भी कहेगें कि बस अब बहुत हो गया अब तो मझे निर्ग्रन्थ होकर मोक्ष पाकर सिद्ध शिला पर ही विराजमान होना है. इस प्रकार यह ग्रन्थ हजारों वर्ष पुराना होकर भी “आउट ऑफ डेट” नहीं है बल्कि “अप टू डेट' हैं.
इस महान ग्रन्थ की विशेषता है कि यह पूर्ण रूपेण आध्यात्मिक होकर भी जनसाधारण के लिए ही है. जिनको आध्यात्म में रूचि नहीं होती है अर्थात अरुचि होती है वे भी जब इसे पढ़ना आरम्भ करते है, ग्रन्थ की समाप्ति तक नहीं रुकते हैं. इसका एक ही कारण हो सकता है, इसकी सर्व साधारण के समझ में आने वाली भाषा और उदाहरण जो मानव मन पर अपनी एक अमिट छाप अंकित कर देते हैं.
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com