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लाग रे सैं।” पहरेदारां नै जुआब दिया ।
"रे भाई! दखे
हम तै बूढे बाह्रमण सैं । म्हारा टैम भी लवै-ए आ रहूया सै। के बेरा कद गिरड़ ज्यां! मरण तै पहल्यां राज्जा नै देख लैण दे । तेरा के बिगड़े से ?"
पहरेदार नैं वे ओड़े-ए थाम दिए अर आप राज्जा धोरै गया । बूड्ढे बाहूमणां की बात बताई । राज्जा मटणा ला कै न्हाण आला था । बोल्या, “दोनूं बाहूमणां नै इज्जत ते आड़े ए लीआ । "
पहरेदार नैं दोन्नूं महल मैं भेज दिए। राज्जा नै बूझी अक क्यां खात्तर आए? बाहूमण बोल्ले, "म्हाराज! जिस रूप की बड़ाई हाम नैं सुणी थी, दुनिया के लोग लुगाई जिस की बड़ाई करदे होए कोन्यां छिकदे, आज ओ रूप देख के हम धन्न हो गे । "
न्यू सुण कै सन्त्कुमार मैं घमण्ड आ ग्या । ओ घमण्ड मैं भर कै बोल्या - "ईब्बै थम नैं के देख्या सै, जिब मैं गहणे-कपड़े पहर कै.. दाऊं जंच कै दरबार मैं जाऊंगा, जिब मेरी सुथराई देखियो । देखते-ए रै ज्याओगे । ” बाहूमण उलटे चले गए। दोन्नुआं नैं फैसला कर्या अक राज्जा नैं दरबार मैं देखेंगे ।
माड़ी वार पाछै बाहूमण दरबार मैं पहोंच गे । राज्जा सनत्कुमार गहणां-कपड़ां तै सज्या-धज्या इतना सुथरा लाग्गै था जाणुं कामदेव की मूरती धरी हो । ओ रूप देख कै आंख सहजै -सी छिक्कैं-ए ना थीं । बाहूमणां तै राज्जा नै कही अक “क्यूं पंडज्जी! जीसा मन्नैं बताया था, ऊसा-ए सै ना मेरा रूप ?"
हरियाणवी जैन कथायें / 38