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कोतवाल बोल्या, "म्हाराज! चोरी रोकण खातर मन्नैं तो आपणी ओड़ तै पूरा-ए हांगा ला लिया। ओ चोर इतणा ऊत अर चात्तर सै अक थ्यांदा - ए कोन्यां । ईब मेरे मैं इतणी ल्याकत कोन्यां रही मैं उस नैं पाकड़ ल्यूं । मेरी ते या रै सै अक किसे ओर जणे तै मेरा काम सोंप यो । आग्गै थारी राज्जी सै । "
न्यू सुण कै राज्जा सोच्चण लाग्या । कोतवाल ते उसने ओर बात भी बूज्झी। उन्नै बताया अक "लौहखुर का पोता रोहिणिया (रोहिणेय) ए सै जो यो करम करै सै। घणी कोसस कर ली म्हाराज पर किस्से तरियां भी ओ थ्याता कोन्यां । ”
राज्जा आपणे दरबार कान्नीं देखण लाग्या । जाणुं बूझता हो- सै कोए जो उस नैं पाकड़ ले । सब की सिकल देखते-देखते राज्जा की नजर आपणे मंतरी अभै कुवार पैटिक गी । ओ बोल्या, “रे अभैकुवांर! मन्नै उम्मेद सै, तू उस नैं पकड़ण मैं कामयाब हो सकै सै। तू-ए आपणी अकल अर हुस्यारी दिखा। ईब या तेरी जुम्मेवारी सै अक तू रोहिणिय नैं पकड़े। ”
अभैकुवांर राज्जा के हुकम तै चोर नै पकड़ण की नई-नई तरकीब सोच्चण लाग्या । कोसस करण ल्याग्या । रोहिणिया भी उस तै घाट्य कोन्या था । गाड्डी की गाड्डी अकल ले रहूया था। ओ मंतरी नैं भी कोन्यां ध्याया ।
करण खातर लिकड्या । ओड़ै राक्खे थे । वे रोहिणिये कै पाछै सार्यां तै आंख-मिचाई देता होया
एक बर रोहिणिया राजगीर में चोरी अभैकुवांर नैं पहल्यां तैं पहरेदार बिठ्या कै लाग लिए, पर ओ तै उनका भी गरू था।
हरियाणवी जैन कथायें / 30