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छिमा की मूरत
राजगीर मैं एक माली रह्या करदा । उसका नां अरजन था। नगरी तै बाहर उसका एक सुथरा-सा बाग था । उसमें भांत-भांत के घणे-ए फूल खिल्या करदे | माली उन फूलां नै बजार मैं बेच के आपणा गुजारा कर्या करता।
बाग मैं एक देवतै का मंदर भी था । माली नित्त नेम उसकी पूज्जा कऱ्या करता । देवतै का नां था- मुद्गरपाणी । उसके हाथ में हर टैम मोदगर रड्या करता। जाएं तै उसका नां मुद्गरपाणी पाक ग्या था । सरू तै ए माली उस नै आपणा दाद्दालाही देव मान्या करदा, अर पूज्या करता ।
एक बर की बात सै । छै दुसट आदमी उसके बाग मैं बड़गे। माली आपणी घरआली गेल्लां फूल कट्टे करै था। माली की घरआली का रूप देख कै दुष्टां के जी मैं पाप आ गया। उनका जी कऱ्या, अक इसकी घर आली नैं कितै ले चाल्लैं । ___माड़ी वार पाछै माली देवतै की पूज्जा करण खात्तर मंदर मैं गया । दुष्टां नै ओ ओडै-ए पाकड़ लिया, अर जेवड़ी गेल्यां जूड़ दिया। फेर उसकी घर आली ते मूंडा ब्योहार करण लाग गे । न्यूं देखकै माली का खून उबाला खा ग्या । उसनैं जेवड़ी तै छूट्टण की घणी-ए कोसिस करी पर ओ छूट ना सक्या ।
जिब माली की कोए पार ना बसाई तो उसनै देवता याद कऱ्या । भित्तर-ए-भित्तर कही, अक, “तेरी आंक्खां आग्गै मेरी घर आली गेला दुसट
छिमा की मूरत/23