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दरबार के लोग यो सीन देख के हाहाकार करण लाग्गे । सब मैं मिल के राज्जा आग्गै हाथ जोड़े अक यो काम मतन्या करो । सबने कही"म्हाराज! यो बाज दुष्ट सै । हम इसनैं इब्बै ए मार के भजा देंगे ......
पर आप आपणे आप नैं कुरबान मत न्या करो। राज्जा आपणी बात तै कत्ती ए ना डिग्गे । उन नैं आपणे मरण का डर ना था। वे तै भित्तर -ए-भित्तर राज्जी थे, अक आपणी कुरबानी कर के वे एक पराणी की जान बचावै सैं।
चाणचक ओडै एक देवता परगट होया। ओ राज्जा तै माफी मांगण लाग्या । पलक झपकतें ए सारा सीन बदल गया । राज्जा नैं अर सारे दरबारियां नैं देख्या, ओडै ना तै कबूत्तर से अर ना बाज । फेर राज्जा नैं आपणा सरीर देख्या तै बेरा ना क्यूकर उनका सरीर भी पहलां बरगा हो गया था ।
देवता नैं झुकते होए कही- 'म्हाराज ! मैं देवां की सभा में बैठ्या था । म्हारे राज्जा इंदर नैं आपके दया-भाव की घणी ए तारीफ करी थी। न्यूं कही अक सारी धरती पै मेघरथ बरगा दया करण आला ओर कोए राज्जा कोन्यां । मन्नैं यकीन-ए ना आया। मैं थारा हिंतान लेण खातर चाल पड्या । बाज का रूप धर कै, मैं आड़े आया था। ओ कबूत्तर भी मेरी माया थी। मन्– थारा हिंतान लिया। हिंतान मैं आप कत्ती खरे लिकड़े । साचें-ए आप जीस्सा दया करण आला इस दुनिया में दूसरा कोन्यां । न्यूं कहू कै ओ भी गैब हो गया। इस बात से राज्जा की बड़ाई चारूं कान्नी दूर-दूर ताईं होण लाग्गी । ___बाद मैं राज्जा मेघरथ जैन धरम के सोलहमें तीरथंकर भगवान् शांतिनाथ बणे।
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हरियाणवी जैन कथायें/18