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________________ अरना ए वे कित्तै खूर्वै । तू हिकमत जाणै सै ना! ये तीन्नूं रतन आपणे भित्तरले मैं सिंभाल ले अर हिकमत कर। पैहूला रतन सै अक कदे किसे बेमार तै नकली दुआई मत न्यां दिए। दूसरा रतन सै अक जो बेमारी काब्बू की ना हो उसका इलाज मतन्यां करिए, अर, तीसरा रतन यो सै अक गरीब आदमी तै कदे फीस मत न्यां लिए। ये रतन ले ज्या । हम भी देखेंगे। अक तेरे घर का दलद्दर कद ताईं ना लिकड़े। चार म्हीने मैं आड़े ए ठेहरूंगा । होज बखाण हो सै। टैम काढ़ कै बखाण सुणन भी आया करिये । ” तीसरे दन ते उसनैं हिकमत सरू करी । योगिराज जी मैं उसकी दुकान पै जा कै मंगली सुणाई। चार म्हीने पाच्छै जिब योगिराज ओड़े तै चाल्लण लाग्गे ते उसनैं भरी सभा मैं कही, “भाइयो! बड़े करमां तै ईसे साधुओं के दरसन हों सैं। इनकी किरपा तै मन्नै फेर हिकमत करी अर आपणे घर तै दलद्दर धोया । मेरी जोत्तस झूट्ठी ना थी । ये तै साच्चें एं जुहारात के ब्योपारी सैं । ” सिरी योगिराज जी म्हाराज नै भारत के गाम-गाम मैं हांड-हांड कै साच्चै धरम का परचार कर्या । लाख्यां आदमियां तैं अहिंसा-सत्तै परेम की राही बताई । परेम-प्यार तैं हैणा सिखाया अर भूंडे काम छोड्य कै सदाचार तै जीणा सिखाया । उनकै उपदेसां तै हज़ारां आदमियां ने जूआ खेलना मांस - अण्डा खाणा, सराब पीणा जिसे जिसे भूंडे काम छोडूय दिए । साच्ची बात ते या सै अक वे साच्चे साधू थे अर साच्चे गरु थे । साच्चे साधू की पिछाण-ए या हो सै, ओ काम, किरोध, मोह, लोभ, मान बड़ाई का त्यागी हो सै । जीउ मात्तर तैं ओ परेम कर्या करै । जाती-पांत्ती अर ऊंच-नीच का ओ फरक कोन्या करता। ओ सब नै साच्चे गरू योगिराज सिरी रामजीलाल जी म्हाराज/119
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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