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________________ इंसां के दिल में रहम का, जज्बा भरूंगा मैं। ये सुन के दिल में शाह के, पैदा हुआ ख्याल। नूर-ए-नजर हो दूर, नजर से ये है महाल बस है रवां अभी से, चली जाए कोई चाल। जज्बात ताकि, लखते-जिगर के हो पामाल। 8 देखा जो शमां ने सेहवा, झलकती है जाम से, शादी रचाई आप की बस धूम धाम से। माता पिता के हुक्म पर, सर को झुका दिया, खुद अपनी आरजूओं को, अकसर मिटा दिया। जज्बात जोश वाले, सब को भूला दिया। पानी की तह में यानि, आग को छिपा दिया। 9 करना अदा है फर्ज को ये जानते थे आप, जज्वाते वालदैन के, पहचानते थे आप। जब सर से बालदैन का, साया ही उठ गया। इक बार दिल में फिर वही, महसर बसा हुआ, इक रोज जा के भाई ने, यूं आप ने कहा। मालिक हैं आप तख्त के, रूखस्त करें अता। 10 मुझ को भी अपने फर्ज, अदा करने दीजिए, बीमार दिल की कुछ तो, दवा करने दीजिए। ये बात सुन कर भाई को, बेहद अलम हुआ, कहने लगा कि ये तो है, सरा सर ना रखा। खुद जान को अपने जिस्म से, कैसे करूं जुदा, ताहम बा-जिद है, तो यूं ठहरा फैसला। 11 खैरात अपने हाथ से, इक साल दीजिए, फिर अख्तयार आप को, सन्यास लीजिए। रौशन किए चिराग, हकीकत के आपने,
SR No.009995
Book TitleMahavir ka Mukhtsar Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahir Ludhiyanvi
PublisherSahir Ludhiyanvi
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 KB
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